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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ०१ सू० ४ लवणसमुद्रवक्तव्यतानिरूपणम् ८५ 'उदीचि-पाईण मुग्गच्छ० १ ' उदीचीप्राचीनम् तदुभयदिगन्तरम् ईशानकोणम् उद्गत्य उदयं प्राप्य प्राचीन-दक्षिणम् आग्नेयकोणम् आगच्छतः ? अस्तं गच्छतः किम् ? प्राचीन-दक्षिणम् आग्नेयकोणम् उद्गत्य, दक्षिण-प्रतीचीनम् नैऋत्यकोणम् आगच्छतः ? इत्यादि जम्बूद्वीपोक्तवत् प्रश्नः कल्प्यः । भगवानाह'जच्चेव जंबुद्दीवस्स' या चैव जम्बूद्वीपस्य ' वत्तव्चया' वक्तव्यता अनौव पूर्वतृतीयमचे 'भणिया' भणिता 'सच्चेव सव्वा' सा चैव सर्वा 'अपरिसेसिया' अंपरिशेपिका सम्पूर्णा ' लवणसमुदस्स वि' लवणसमुद्रस्यापि ' भाणियब्बा, भणितव्या, तथा च जम्बूद्वीपपकरणोक्तसूत्ररीत्या 'उदीची - प्राचीनम् उद्गत्य (लवणे समुद्दे ) लवण समुद्र में (सूरिया ) दो सूर्य ( उदीचि पाईणमुग्गच्छ० ) उदीचि प्राचीन दिशाओं के अन्तरालरूप ईशानकोण में उदित होकर प्राचीन दक्षिण दिशा के अन्तरालरूप आग्नेयकोण में अ. स्त होते है क्या ? इसी तरह से आग्नेयकोण में उदित होकर नैऋत्यकोण में अस्त होते हैं क्या ? इत्यादि रूप से जंबूद्वीप के प्रकरण में कहे गये प्रश्न के अनुसार इस प्रश्न का आशय जानना चाहिये । इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् गौतम से कहते हैं कि ( जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया) हे गौतम ! जिस प्रकार से जम्बूदीप के १७७ एकसो सित्तोतेर सूत्ररूप प्रकरण में जंबूदीप संबंधी वक्तव्यता अर्थात् वर्णन कहा है उसी तरह यहां कहना चाहिये, (सच्चेवसव्वा) घही सव वक्तव्यता (अपरिसेसिया) पूर्णरूप से (लवणसमुदस्स वि भाणियन्वा ) लवण समुद्र के विषय में भी जान लेनी चाहिये । तथा च जम्बूद्वीप के प्रकरण में कथित सूत्ररीति के अनुसार (उदीची & Hera ! सपए समुद्रमा (सूरिया ) मे सूर्या (उदीचि-पाईणमुग्गच्छ- ) Salee પ્રાચીન દિશાની વચ્ચેના પૂર્વ અને ઉત્તર દિશાની વચ્ચેના ઈશાનકેણમાં ઉદય પામીને, પ્રાચીન (પૂર્વ) અને દક્ષિણની વચ્ચેના અગ્નિકોણમાં શું અસ્ત પામે છે? ઈત્યાદિ જે પ્રશ્નો જંબુદ્વીપના પ્રકરણમાં આવ્યા છે, એ પ્રશ્નો અહીં પણ ગ્રહણ કરવા જોઈએ. उत्तर-(जच्चेव जंबूहोवस्स वत्तव्यया भणिया) गौतम ! २वीश दीपना ૧૭૭ એકસેસર સૂવરૂપ પ્રકરણમાં જંબુદ્વીપ સંબંધી વર્ણન કરવામાં मा०यु छ, (सच्चेव सत्रा) मे समस्त पधुन (अपरिसेसिया) भूपए ३२ (लव. णसमुदस्स वि भाणियचा) aqसमुद्रना विषयमा ५ सभ७ यु. मने - डीपना ४२मां अपामा मावेल सूत्र प्रभारी (उदीचि-प्राचीनम् उद्गत्य
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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