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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.६२.३ चमर आत्मरक्षकदेवविशेषनिरूपणम् ७५५ इन्द्राणां यस्य यावन्त आत्मरक्षकास्ते भणितव्याः । तदेवं भदन्त । वदेवं . भदन्त ! इति ॥ मू० ३ ।। ___टोका-गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! 'चमरस्स णं' चमरस्य खलु असुरिंदस्स' असुरेन्द्रस्य, 'असुररणो' असुरराजस्य 'कई' कति 'आयरक्खदेवसाहस्सीओ' आत्मरक्षकदेवसाहस्त्र्यः 'पण्णताओ' प्रज्ञप्ताः कथिताः ? भगवानाह-'गोयमा' छप्पनहजार आत्मरक्षकदेव चमर के कहे गये हैं । (तेणं आयरक्खावपणओ-एवं सब्वेसिं इंदाणं जस्स जत्तिया आयरक्खा ते भाणियव्वा सेवं भते ! सेवं भंते।) यहां आत्मरक्षकदेवों का वर्णन समझना चाहिये । तथा समस्त इन्द्रों के जिसके जितने आत्मरक्षक देव हैं उनका भी यहां कथन समझलेना चाहिये । हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है हे भदन्त ! वह ऐसा ही है-इस प्रकार कह कर गौतम अपने स्थान पर विराजमान हो गये। इस प्रकार तृतीय शतकमें यह छठवां उद्देशक समाप्त हुआ ॥
टीकार्थ-विकुर्वणा का अधिकार चल रहा है अतः विकुणा करने में समर्थ जो देव हैं उनमें से विशेष देवोंका निरूपण करनेके लिये यहां कहा जा रहा है-इस पर गौतम प्रभु से पूछते हैं 'चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररपणो' कि हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के 'कइ आयरक्खदेव साहस्सीओ पण्णत्ताओ' कितने रक्खदेवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ) यभरना मात्म२६४ | सामपन २ छ. (तेणं आयरक्खा वण्णओ-एवं सव्वेसिं इंदाणं जस्स जत्तिया आयरक्खा ते भाणियन्या) मी मामरक्ष हेवेन वर्णन थj धमे, अने ४२४ ४.दना 32at આત્મરક્ષક દેવો છે. એ પણ કહેવું જોઈએ.
(सेवं भंते । सेव भंते ।) महन्त ! सारे प्रतिपाइन यु ते यथार्थ છે, આપની વાત સાચી છે. આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણુ નમસ્કાર કરીને, ગૌતમ સ્વામી પિતાની જગ્યાએ બેસી ગયા. આ રીતે ત્રીજા શતકને છઠ્ઠો ઉદ્દેશક સમાપ્ત થશે.
ટીકાર્થ_વિકુર્વણનો અધિકાર ચાલી રહ્યો છે. તેથી વિદુર્વણ કરવાને સમર્થ જે દેવે છે એમાંના વિશિષ્ટ દેવોનું નિરૂપણ આ સૂત્રમાં કરવામાં આવ્યું છે.
गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे । 'चमरस्स पं भंते ! अमरिंदस्स असुररण्णो' 8 मह-11 असुरेन्द्र, असु२२सय यभरना 'कइ आवरक्खदेवसाहरसीओ पण्णता?? 21 8२ मामरक्ष । ४ा छ ? मडावी२ अंभुनामा