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________________ ममेयचटिका टीका श० ३ उ. १ अमिमूर्तिमतिभगवदुत्तर २१ घनन घनाकारो ध्वनी साधर्म्यात् यो 'इगो' - मृदङ्गः 'पहु' = पटुपुरुषेण प्रवा दिवरवेण - शब्देन दिव्यान - भोगभोगान् भुञ्जानो विहरति । अथ तस्य चमरस्य विकुर्वणाशक्तेः स्वरूप सामर्थ्य च दृष्टान्तमदर्शनपूर्वक वर्णयति 'एवतिय चण पविविए' इत्यादि । यथा विद् युवा युवर्ति हस्तेन हस्ते गाढ़ा - लिङ्गनपूर्वक सलग्नहस्ताद्गुलितया गृह्णाति यथा वा चक्रस्य नाभि (मध्य भागस्य काष्टम् ) अरकः साध समन्तात् सरद्धा-प्रतिभाति तथैव वैक्रियशक्या समवतः सन् जम्बूद्वीप स्वशरीरसम्बन्धि - सुरदेवदेवीभि पूरयितुं समर्थ , साथ निरन्तर होते हुए नाट्य, गीत और वादित्रकी ध्वनियोंके साथ २ तथा वीणा, हस्तताल, त्रुटित एक प्रकारका घाद्यविशेष जिसे हिन्दी भाषामें खजरी कहते हैं तथा ध्वनि के साधर्म्य से घन मेघ जैसा आवाजवाले मृदङ्गकी ध्वनिके साथर दिव्य भोगोंको वह चमरेन्द्र भोगता हुआ आनन्दमग्न रहता है । अप सूत्रकार उस चमरेन्द्रकी विकर्षणा शक्तिके स्वरूपको और उसके सामथ्र्यका दृष्टान्तपूर्वक वर्णन करते हैं 'एवतिय च ण पभू विउव्वित्तए वह चमरेन्द्र विकुर्वणा करनेके लिये ऐमा समर्थ है जैसे-' से जहानामए जुवतिं जुवाणे रथेर्ण हत्थे गेहेजा' कोई युवा युवति को अपने यल से हाथ पकड कर च लेता है और उसे अपने पाहुपाश में भर लेता है 'क्स वा नाम अरगा उता सिया' अथवा जैसे 'चक्र के मध्य में रहने वाले फाष्ठ के साथ अरककाष्ठ सपूर्ण रूपसे सलग्न रहता है, उसी प्रकार वह असुरेन्द्र धमर वैक्रियशक्ति द्वारा समवहत " નાદની સાથે સાથે વીણા, કરતાળ, ખજરી, અને ઘન (મેઘ) જેવા ઋવાજ કરતા મુદગના અવાજ પશુ સભળાય છે મા કશું પ્રિય ખવાશે અને ત્રીજા દિવ્ય ભાગને ભાગવતા તે ચમરેન્દ્ર ખાન દમગ્ન રહે છે. હવે સૂત્રકાર ચમરેન્દ્રની વિજ્ઞા શક્તિના સ્વરૂપનું અને તેના સામર્થ્યનુ દુષ્ટાતા સહિત વર્ણન કરે છે, " एवतिय च ण पभू विउच्चिस " से नहा नामए जुवर्ति जुत्राणे इत्येण इथे गेण्हेज्जा" व ते ४ युवान व युवतीने साथ पम्डीने पोताना बाहुपाशमा देवाने समर्थ होय छे " षफ्फस्स वा नामि अरगा उचा सिया " જેવી રીતે માની નાભિ ( મધ્યમા રહેનારૂ કાષ્ટ ) ચક્રના આરાઓને પડી શખવાને સમર્થો હોય છે, એવી જ રીતે તે ચરેન્દ્ર વિણા કરવાને એટલે સમ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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