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________________ ममेयचन्द्रिमा टीका १३ उ १ चमरविपये द्वितीय गणघरख्य प्रश्न. १७ वयासी' एपामर्य तत्रैव विलोकनीय' । पव-वक्ष्यमाणमकारेण 'वयासी' अवादीन-पृष्टवान " चमरे ण मते ! अमरिंदे अमुरराया" चमर. खल्ल भदन्त ! असुरेन्द्र अमरराज कीदृशी कियती वा महती चमरस्य ऋद्धिरिति जिज्ञा सयाऽऽह-"केमहिहिरा" किंमहर्दिक केन रूपेण किंस्वरूपा वा क्यिती वा महती ऋद्धि विमानपरिवारादिरूपा यस्य स तथोक्त । 'के महज्जुइए' किं महा युतिक विशिष्टशरीरामरणादि प्रभा भास्वररूपा यस्य स तया, 'के महायछे' कीदृश वल यस्य स नया, 'केमहानसे' किं महायशा -कीदृश महद्यशो विशालकीर्तिर्यस्य स तया, 'के महायोक्खे' कीदृश महत् सौरव्यम् यस्य स तया, 'के माणुभागे' कीश महानुभाग =अचिन्त्यममावो यस्य स तया "केवइयं घणं पभू विउवित्तए" फियञ्च खलु प्रमु विकुर्वितुम् ? क्यिद्प कविसख्यक रूप विकृर्वितम् निर्मातु ममु समय ? इति अग्निभूते प्रश्नः । ये तपसे थे। 'एव वयासी' में एष पद यह करता है कि उन्होंने इस प्रकार घक्ष्यमाणरूपसे पूछा-'चमरे ण भते ! असुरिंदे असुरराया केमहिट्टिए, केमहज्जुईए, केमहापले, केमहाजसे, केमहासोक्खेके महानुभागे, केवड्य च ण पभू विउन्वित्तए" हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरराज चमरकी कैसी अथवा कितनी प्रद्धि है अर्थात् असुरेन्द्र असुरराज चमरकी विमान परिवार आदिरूप ऋद्धि कितनी बडो है ? 'के महायुतिक' उसके शरीरकी तथा आभरण आदि की प्रभा कैसी क्या है ? 'के महायले' उसका पल कैसा है ? ' फेमहाजसे । उसकी विशाल कीर्ति कैसी है ? किं महासौख्या' उसकामहासुख केसा है ? 'कि महानुभाग: उमका अचिन्त्य प्रभाव केसा है ? और वह कितने रूपोंको अपनी विक्रिया से करने के लिये समर्थ है ? इस प्रकार ये अग्निमूति के मन हैं । इनका उत्तर देते हुए प्रभु गौतमसे कहते પર પાણી તે અગ્નિભૂતિ અણગારે મહાવીર સ્વામીને નીચે પ્રમાણે પૂછયુ "चमरेण मते ! अमुरिंदे अमुरराया के महडिए, के महज्जुईए, के महावले, के महाजसे, के महासोक्खे, के महानुभागे, केवइय च ण पमू विउविचए ?" હે ભદન અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ઉમરની અદ્ધિ કેવી છે એટલે કે વિમાન પરિવાર આદિરૂ૫ દ્ધિ કેવી છે તેના શરીરની તથા આભૂષણદિની વૃતિ (પ્રભા) કેવી છે તેનું બળ કેવું છે. તે કેવી વિશાળ પ્રતિ ધરાવે છે તેનું મહાસુખકેવું છે? તે કે અકલ્પનીય પ્રભાવ ધરાવે છે અને તે પિતાની વિકૃણા તિથી કેટલા રૂપ ધારણ કરવાને સમર્થ છે!
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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