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भगवतीमुत्रे
विहाय उत्पतेत् ? छन्त, उत्पतेत्, अनागरः खन्द्र भदन्त ! मावितात्मा कियन्ति मशुः पशोपवीतकृत्यगतानि रूपाणि विकुवितुम् ? सचैत्र यात्रत्-व्यकृत्रद् या विकृति ना, विकुर्विप्यति वा, एवं द्विधा यज्ञोपवीतमपि स यथानामजष्णोवअं फाउं गच्छेला एवामेव अनगारे णं भाविगप्पा एओ जण्णोवईयकिचगएणं अप्पाणेणं उद्धं वेहायमं उप्पपूजा ?) हे भदन्त ! जैसे कोईएफ पुरुष एक तरफ पार्श्व भाग में जनेऊको धारण कर चलता है. उसी प्रकार से भावितात्मा अनगार एकपार्श्व में स्थित जनेऊ को धारण करनेवाले पुरुषके आकार जैसे अपने वैकिय स्वरूप से क्या आकाश में ऊंचे उड़ सकता है ? (हंता, उप्पएजा) हां गौतम ! उड़ सकता है । (अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू एगओ जष्णोवयधियाई रुवाइ चिकुन्चित्तए १) हे भदन्त । भावितात्मा अनगार ऐसे एक पार्श्वमें लटकते हुए जनेऊ को धारण करने वाले पुरुष के जैसे आकार कितने अपनी विक्रिया शक्तिसे बना सकता है ? ( तं चैव जाव विकुव्विसु वा विकुव्विति वा, विकुव्विस्संति वा, एवं दुहओ जण्णोवइयं वि) हे गौतम! इस विषय में उत्तर पहिले कहेकथन के अनुसार ही जानना चाहिये । अर्थात् भावितात्मा अनगार ने भूतकाल में ऐसे रूपों की विकुर्वणा नहीं की है, वर्तमान में ऐसे रूपो की वह विकुर्वणा नहीं करता है, और न भविष्यत् में वह ऐसे चैम्पि पुरुष माझरना विषयमा पशु समन्युं ( से जहा नामए केइपुरिसे एगओ जण्णोवइअं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अनगारेणं भावियप्पा एगओ जण्णोवश्यकच्चगए अप्पाणें उड़ढं वेहायसं उप्पएज्जा ?) डे / लहन्त ! सेवा रीते अध पुरुष પડખે જનેઇ ધારણ કરીને ચાલે છે, એવી રીતે એક પડખે જનોઈ ધારણ કરી હોય એવા પુરુષરૂપનું પેાતાની વિકણા શકિતથી નિર્માંણુ કરીને થ્રુ ભાવિતાત્મા અણુગાર आाशमां 'थे (डी शवाने समर्थ छे ? (हंता, उप्पएज्जा ) ३ गौतम ! ड सेवी ज्ञते ते बडी शे छे. (अणगारेणं भंते ! भावियष्णा केवइयाई पभू एगओ जष्णो इयकिच्चगयाई रुवाई विकुव्वित्तए ? ) हे महन्त ! आवितात्मा अगुगार, એક પડખે જનેાઇ ધારણ કરીને આકાશમાં ઉડતા કેટલાં પુરુષપાનું પેાતાની વિકા शक्तिथा निर्माण श छे ? (तंचेव जाव विकुविसु वा, विकुब्वंति वा, विकुव्विति वा, एवं दुहओ जण्णोवइयं पि) हे गौतम! या प्रश्न उत्तर પણ ઉપર પ્રમાણે જ સમજવા. ભાવિતાત્મા અણુગારે ભૂતકાળમાં કદી પણ એવી વિધ્રુણા કરી નથી, વર્તમાનમાં કદી પણ એવાં રૂપાની વિણા કરતા નથી, અને