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________________ ६७६ मगती विधेय उत्पतेत् ? हन्त, उत्पतेत्, अनागरः खलु भदन्त ! मावितात्मा कियन्ति प्रभुः यज्ञोपवीतकृत्यगतानि रूपाणि विकुर्वितुम् ? तचैव यावत् व्यकुद् या विकुर्वति वा, विर्विष्यति वा, एवं द्विधा यज्ञोपवीतमपि स यथानामजणावह काउं गच्छेजा, एवामेव अनगारे णं भावियप्पा एगओ जष्णोवईयकिचगएणं अप्पाणेणं उद्धं वेहायमं उप्पपूजा ?) हे भदन्त ! जैसे कोईएक पुरुष एक तरफ पार्श्व भाग में जनेऊ को धारण कर कालता है. उसी प्रकार से भावितात्मा अनगार एकपार्श्व में स्थित जनेऊ को धारण करनेवाले पुरुषके आकार जैसे अपने वैकिय स्वरूप से क्या आकाश में ऊंचे उड़ सकता है ? (हंता, उप्पएज्जा) हां गौतम ! उड़ सकता है | ( अणगारे णं भंते । भावियप्पा केवइयाई पभू एगओ जष्णोवय किचयाई रुवाइ विकुन्चित्तए ? ) हे भदन्त । भावितात्मा अनगार ऐसे एक पार्श्वमें लटकते हुए जनेऊ को धारण करने वाले you के जैसे आकार कितने अपनी विक्रिया शक्तिसे बना सकता है ? ( तं चैव जाव चिकुव्विसु वा विकुव्विति वा विकुव्विस्संति वा, एवं दुहओ जण्णोवइयं वि) हे गौतम ! इस विषय में उत्तर पहिले कहेकथन के अनुसार ही जानना चाहिये । अर्थात् भावितात्मा अनगार ने भूतकाल में ऐसे रूपों की विकुर्वणा नहीं की है, वर्तमान में ऐसे रूपो की वह विकुर्वणा नहीं करता है, और न भविष्यत् में वह ऐसे वैडिप पुरुष आहारना विषयमा पशु समन्युं (से जहा नामए केइपुरिसे एगओ जण्णोवइअं काउं गच्छेज्जा, एवामेच अनगारेणं भावियप्पा एगओ जण्णोवइय किच्चगएणं अप्पाणेणं उडूढं वेहायसं उप्पएज्जा ?)डे, लहन्त ! नेवी रीते अा पुरुष પડખે જનેાઈ ધારણ કરીને ચાલે છે, એવી રીતે એક પડખે જતાઇ ધારણ કરી હોય એવા પુરુષરૂપનું પેાતાની વિકુ॰ણા શકિતથી નિર્માણ કરીને શું ભાવિતાત્મા અણુગાર भाषाशभां बर्थे बडी शापाने समर्थ छे ? (हंता, उप्पएज्जा) हे गौतम! डा, खेवी रीते ते बुडी श े छे. (अणगारेण भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू एमओ जष्णोवइयकिञ्चगयाई रुवाई विकुव्वित्तए ? ) हे अहन्त ! भावितात्मा मागुगार, એક પડખે જનેાઇ ધારણ કરોને આકાશમાં ઉડતા કેટલાં પુરુષપાનું પેાતાની વિધ્રુવ ણુા शस्तिथी निर्माण पुछे ? (तंचेव जाव विकुव्विसुवा, चिकुवंति वा, विकुव्विति वा, एवं दुहओ जण्णोवइयं पि) हे गौतम! या प्रश्न उत्तर પણ ઉપર પ્રમાણે જ સમજવે. ભાવિતાત્મા અણુગારે ભૂતકાળમાં કદી પણ એવી વિધ્રુણા કરી નથી, વર્તમાનમાં કદી પણ એવાં રૂપોની વિા કરતા નથી, અને
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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