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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श ३ उ १ मोकानगर्यो घीरसमवसरणम् यावत् पर्युपासीन. एवम् अवादीत - चमरो भगवन ? असुरेन्द्र:, असुरराज, चित् महर्द्धिकः, वियत् महाद्युतिक, वियत महापल वियत् महायशा, वियत् महासौरव्य कियत् महानुभाग', वियच प्रभु विकुर्वितुम् ? गौतम ! चमर' असुरेन्द्र असुरराज, महर्दिक, यावत्- महानुभाग, स तत्र चतुर्खिशतो भवनात्रासशतसहस्राणाम्, चतुपाटे सामानिकमहस्राणाम्, त्रयस्त्रिंशत प्रायस्त्रिंशकानाम् यावत् उत्सेध-ऊचाई-था । ( जाव पज्जुवासमाणे एव वयामी) यावत् प्रभुकी पर्युपासना करते हुए इन्हों ने प्रभुसे इस प्रकार पूछा- (घमरे णं भते ! असुरिंदे असुरराया) हे भदन्त ! असुरों का राजा एवं असुरों का इन्द्र जो चमर है घर (केमहिलिए) कितनी पड़ी ऋद्धिवाला हे ? (महज्जुहु ) कितनी घड़ी युतिवाला है । (केमहापले) कितने पड़े पलवाला है ? (के महाजसे) कितने पढ़े यशवाला है । (केमहासोक्खे) कितने पड़े सुखवाला है । (केमहाणुभागे) तिने पड़े प्रभाववाला है । (केव च ण पभू विउव्वितए) और वह कितनी विकुर्वणा कर सकता है । (गोयमा ) हे गौतम! ( चमरे ण असुरिंदे असुरराया ) असुरेन्द्र और असुरराज घमर (महिडिए) पटुत बड़ी ऋद्धिवाला है। जाव महाणुभागे) यावत् बहुत घड़ा प्रभावशाली है । (सेण तत्थ चउप्तीसाए भवणावास सय सदस्साण, चसट्ठीए सामाणिय साहस्सीण) वह वहा चौतीस लाख भवनाषासों का, ६४ चोसठ हजार सामानिक देवका (तायप्तीसाए तायचीसगाण) और ३३ तेत्तीस प्रायशिक पायुपासना हरीने तेभावे (एव वयासी) महावीर प्रभुने या अहारने अन पूछयो( चमरे ण भये ! असुरिंदे असुरराया) हे महन्त । असुरानो शब्द, असुरेन्द्र शभर (केमहिडिए) टी ऋद्धिवाणी छे ? ( के महज्जुईए) टबी तिवाणी छे ? ( केमहावछे ) टला भणवाणी छे ? (केमहाजसे) डेटा यशवाणी हे ? (के महासोक्खे) डेटा शुभवाणी छे ? ( केमहाणुभागे) हेटो प्रभावशाली छ ? ( वय चण पभू विठन्वितए) भने ते ठेटबी विभुवा हरीश छे ? ( गोयमा ! ) गौतम । ( घमरेण अम्मुरिंदे असुरराया ) असुरेन्द्र भने असुरशन भर (महिडिए) बाली भारे ऋद्धिवाणी छे ( जाम महाणुभागे ) તે ઘણી જ વ્રુતિવાળા, ઘણા જ મળવાળા, ઘણા જ યશવાળા, ઘણા જ સુખવાળા અને अभाववाणी ( से ण तस्य चठचीसाए भवणावाससयसहस्साण, चउसट्टीए सामाणियसाहस्सीण ) ते त्या यात्रीस बाय भवनावासानु, भोस इतर सामानि देवानु, (सायचीसाए वायत्तीसगाण) भने तेत्रीय त्रायशि
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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