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________________ ममेयचन्द्रिकाटीका श.३ उ.४ सू.४ जीवपरलोकगमनस्वरूपनिरूपणम् ६३७ द्रव्याणि पर्यादाय कालं करोति तल्लेश्येपु उपपद्यते, तद्यथा-तेजोलेश्येपु वा, पद्मलेश्येपु वा, शुक्ललेश्येषु वा ॥ ४ ॥ __टीका-परिणामाधिकारात् लेश्यायाः परिणामं प्ररूपयितुमाह 'जीवे णं भंते इत्यादि । गौतमः पृच्छति-हे भदम्त ! 'जे भविए नैरइएम उववज्जित्तए' यः खलु जीवो नरयिकेपु उपपत्तुं जन्म ग्रहीतुं भव्यः योग्यो वर्तते 'से णं भंते !' स खलु भदन्त ! 'किलेसेमु' किलेश्येपु' का कृष्णाधन्यतमा लेश्या येपां ते किलेश्याः तेपु मध्ये कस्यां लेश्यायाम् 'उववज्जइ' उपपद्यते जायते ! भगवानाह-'गोयमा ! जल्लेसाई' इत्यादि ! हे गौतम ! यल्लेश्यानि या लेश्या वह हे भदन्त ! जैसी लेश्यावाले द्रव्यों का ग्रहण करके मरता है वैसी लेश्यावालों में वह उत्पन्न हो जाता है-जैसे-तेजोलेश्यावालों में, पद्मलेश्यावालो में अथवा शुक्ललेश्यावालों में।। टीकार्थ-परिणाम का अधिकार होने से लेश्याके परिणाम का स्वरूप प्ररूपण करने के लिये सूत्रकार 'जीवेणं भंते' इत्यादि कह रहें हैं-इसमें गौतम स्वामी प्रभुसे पूछते हैं कि-हे भदन्त ! 'जे भविए नेरइएस्सु उववजित्तए' जो जीव नैरयिकों में जन्म ग्रहण करने के योग्य है ‘से णं भंते !' वह जीव हे भदन्त ! 'कि लेसेसु उववजई' किस लेश्यामें उत्पन्न होता है अर्थात्-कृष्णादि लेश्याओं में से कोई एक लेश्या जिनके है वे किं लेश्य हैं-इन लेश्याओंवाले जीवोंके बीच में किस लेश्यामें जन्म लेता है इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि-'गोयमा' हे गौतम ! 'जल्लेसाई इत्यादि-जो लेश्या जिन द्रव्यों છે, તે જેવી વેશ્યાવાળાં દ્રવ્યને ગ્રહણ કરીને મરણ પામે છે એવી વેશ્યાવાળા ઉત્પન્ન થાય છે. જેમ કે તેજેશ્યાવાળાઓમાં, પદ્યલેસ્યાવાળાઓમાં, અથવા શુકલ લેશ્યાવાળાઓમાં તે ઉત્પન્ન થાય છે. ટીકાર્થ– પરિણામને અધિકાર ચાલી રહ્યો હોવાથી લેસ્થાઓના પરિણામના २१३पर्नु नि३५५५ ४२वा भाटे सूत्र४२. जीवे णं भंते याहि सूत्र ४९ ई प्रश्न- महन्त जे भविप नेहएस उववज्जित्तए २७ नारहामा म देवान पात्र डाय छ, से गं भंते ! कि लेसेसु उववज्जइ' त હે ભદન્ત! કઈ લેયાવાળાઓમાં ઉત્પન્ન થાય છે એટલે કે કૃષ્ણ, નીલ આદિ લેશ્યાવાળા માંથી કઇ લેફ્સાવાળા જેમાં તે ઉત્પન્ન થાય છે ? गौतम स्वामीना ते नोवा भापता महावीर प्रभु ४ छ - 'गोयमा !' 3 गौतम ! 'जल्लेसाई दवाई परियाहत्ता कालं करेई' 47 श्यामा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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