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भगवतीने गच्छति, पतदुदयमपि गन्छवि, स गदन्त ! किम् एकतः पता गच्छनि ! द्विधापना गरछति ! गौतम ! एषतः पतार गच्छति ! नो द्विधा पता गच्छति, स भदन्त ! किं वायुकायः पताका ? गौतम ! वायुकायः सः, नो खल सा पताका ॥ ९० २ ॥ ' टीका-क्रियशरीराधिकारादाद-पभूणं भंते !' इत्यादि। गौतमःपृच्छति हे भदन्त ! प्रभुः खलु समर्थः फिम 'याउकाए, वायुकायः' 'एगं मई' एक तरह रूप फरके गति करता है क्या ? (गोयमा ! जसिओदयं वि गच्छा, पयोदयंचि गच्छद) हे गौतम ! यह वायुकाय ऊँची हुई पताकाकी तरह भी रूप बनाकर गमन करता है और गिरि हुई पताकाकी तरहभी रूप पनाकर गमन करता है। (से भते! किं एगओ पडागं गच्छह ?) हे भदन्त ! यह वायुकाय एक दिशा में जैसी एक पताका होती है ऐसा रूप करके गमन करता है ? या दो दिशा में एक साथ जैसी दो पताकाएँ होती हैं ऐसारूप करके गमन करता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (एगओ पडागं गच्छद, नो दुहओ पडागं गच्छद) एक दिशामें जैसी एक पताका होती है ऐसा रूप करके वह वायुकाय गमन करता है। दो दिशामें दो पताका की तरह रूप बना कर वह गमन नहीं करता है। (सेणं भंते! किं वाउकाए पडागा!) हे भदन्त ! वह वायुकाय क्या पताका है ? (गोयमा) हे गौतम (वा उकाए णं से नो खलु सा पडागा)वह वायुकाय है-पताका नहीं है । सू.२।। Gतरसी पताना र ३५ मनापान गमन ४२ छ१ (गोयमा! ऊसिओदयं वि गच्छइ, पयोदयं वि गच्छइ ) 3 गौतम वायुय य १२४ती पता કાના જેવું રૂપ બનાવીને પણ ગમન કરે છે, અને નીચે ઉતારેલી પતાકાના જેવું રૂપ मनावान. ५ मभन ४रे छ ( से भंते ! कि एगओ पडागं गच्छइ ?) महन्त! તે વાયુકાય એક દિશામાં રહેલી એક પતાકા જેવું રૂપ કરીને ગમન કરે છે કે બે हिशामा साथे २८ yaaj ३५ रीने शमन ४३छ? (गोयमा!)
गौतम! ( एगओ पडागं गच्छइ, नो दुही पडागं गच्छद) हिशाभां (રહેલી એક પતાકા જેવા રૂપે તે. ગમન કરે છે, એ દિશામાં રહેલી બે પતાકા જેવું રહ્યું मनापान गमन ४२तुनथा. ( से णं भंते! किं चाउकाए पडागा!) Ed!
वायु२ शुपता छ? (गोयमा) मातम ! (वाउक ए णं से नो खलु • सा पडागा) ते वायुश्य पायुयाछे-पता नथी. ४.२ ॥ .
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