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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.४ म.१ क्रियायावैचित्र्यज्ञानविशेपनिरूपणम् ६११ गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भाविअप्पा' भावितात्मा 'रुक्खस्स' वृक्षस्य किम् फलम् 'पासइ पश्यति ? 'वी' वीजं चा पश्यति ? भगवानाह-चउभंगो' चतुभही योध्या अर्थात् कश्चिद् भावितात्मा अनगारः वृक्षस्य फलं पश्यति, कश्चिद्वीज, कश्चिदुभयम्, कश्चित्तु नोभयमितिरीत्या पञ्चचत्वारिंशत्तमी चतुर्भङ्गी समुपपन्ना । संक्षेपतस्तत्संकलनन्तु अधस्तनं बोध्यम् मूलेन समं कन्दादि वीजान्तानां नवानां संयोजनोत् नव, कन्देन स्कन्धादि वीजान्तमष्टानां संमेलनात् अष्ट, स्कन्धेन त्वगादि वीजान्तानां सप्तानां संयोजनात् सप्त, त्वचा शाखादि वीनान्तानां संयोजनात् पर, शाखया प्रवालामूल फलकी और एक उत्तररूप चतुभंगी मूलयीजकी । इस तरह से ये द्विक संयोगी ९ चतुर्भगी होती हैं। इसी तरह से कंद और स्कंधकी, कंद ओर त्वक्की, कंद और शाखाकी, कंद और प्रवालकी कंद ओर पत्रकी, कंद और पुष्पकी, कंद और फलकी, कंद और पीजकी द्विक संयोगी ८ चतुर्भगी होती है। इसी तरह से स्कन्ध छाल की, स्कन्ध और शाखा की, स्कन्ध और प्रवालकी, स्कन्ध और पत्रकी, स्कन्ध और पुष्पकी, स्कन्ध और फलकी, स्कन्ध और वीज की द्विक संयोगी चतुर्भगी होती हैं। इसी तरहसे छाल और शाखाकी, छाल ओर प्रवालकी,छाल औरपत्रकी,छालऔर पुष्पकि छाल औरफलकी, छाल और पीजकी दिक संयोगी चतुर्भगी ६ छह होती है। इसी प्रकारसे. शाखा-प्रवालकी, शाखा पत्रकी, शाखा एवं पुष्पकी, शाखा एवं फलकी, ચતુર્ભગી અને (° મૂળ અને બીજના ઉત્તરરૂપ નવમી ચતુર્ભગી. આ રીતે તે દરેકને જોડનાં સંગથી કુલ નવ થતુભગી બને છે. એ જ પ્રમાણે (૧) કંદ અને થડની, (૨) કંદ અને શાખાની, (૩) કંદ અને છાલન, (૪) કંદ અને કેપળના, (५) ४४ मन-पाननी, (६) ४६ भने एपनी, (७) ४६ मन ३जनी, मन (८) ४६ ને બીજની, આ રીતે કંદ સાથે ઉપરના આઠ પદના સંયોગથી બનતા પ્રશ્નોના ઉત્તરરૂપ આઠ થતુર્ભગી (ચાર વિકપ) બનશે. એ જ રીતે સ્કંધ (થડ)ની સાથે (१) छाल, (२) शामा, (3) , (४) पान, (५)३८, (6) ३ मन (७) मानना સંગથી ૭ અને બનશે. અને તેના ઉત્તર૩૫ સાત થતુર્ભsી બનો. એ જ રાતે छलनी साथ (१) पा, (२) , (3) पान, (४) sa, (९) ३५ मन (६) બીજના સંયોગથી છ પ્રશનો બનશે, અને તેના ઉત્તરરૂપ છ થતુર્ભાગી બનશે. એ જ પ્રમાણે શાખા સાથે કેપળ, પાન, ફૂલ, ફળ અને બીજને લઈને પાંચ ને પૂછી
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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