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________________ .५७८ .: .--? ..... ... ... ... ... ....... मनात गुमस्य गुप्तस्य गुप्तेन्द्रिगस्येति संग्रामम् 'आउत्तं गच्छमाणस 'मायु उपयोगपूर्वकं यथास्यारया गरछतः गमनं कुर्यतः 'माउत्तं चिट्ठमाणस्स' युपत तिष्ठतः-सोपयोगं स्थिति पुर्याणस्य 'निसीयमाणरस' निषीदतः सोपर्य उपविशवः 'तुपमाणस' वगवर्तयमानस्य सोपयोगं पार्बपरिवर्तनं कु उत्' आयुक्तम् सोपयोगम् 'यत्य-पडिग्गह-कंचल-पायपुच्छणं' वन-परि पम्पल-पादमोन्छन पखादिरजोहरणान्तम् 'गेण्डमाणस' गृहानस्य गृहतः कुर्वतः 'मिश्रिखरमाणस्स' निक्षिपमाणस्य सोपयोगं संस्थापयतः । गारस्य 'जाय-चरसुपामनिवायमवि' यावत् - चचःपक्षमनिपातमात्रमपि : तथाचायमर्थ:-आयुक्तगमनादि स्फुलमियाजालस्य तावत् का कया, या जिसके वश में हैं और जो 'आउत्तं गच्छमाणस्स' उपयोगपूर्वक चल है 'आउत्तं चिट्टमाणस्स' उपयोगपूर्वक खड़ा होता है, 'आउसं निर यमाणस्स' उपयोगपूर्वक भैठता है 'आउत्तं तुपमाणस्स' उपयोगपूर्व करवट बदलता है, 'आउत्तं वत्थ पडिग्गह कंवल-पायपुच्छणं' उ योगपूर्वक वस्त्र, पात्र, कंबल, पादप्रोग्छन आदि वस्त्र से लेकर रज हरणपर्यन्त धर्मोपकरणोंको 'गेण्हमाणस्स' ग्रहण करता है एवं 'रि क्विवमाणस्स' रखता है 'जाव चरखुपम्हनिवायमवि' यावत् । चक्षुपक्ष्मनिपात मात्ररूपक्रिया को भी घडी सावधानी के साथ कर हैं भ्रमात्र भी यतना से हिलाता है, फिर भी वह सक्रिय, मा गया हैं और उसके फर्मबंध कहा गया है । तात्पर्य यह है कि उ योगपूर्वक की गई ये चलना आदि स्थूल क्रियाएँ तो, उस अनगार व सावधानी के साथ होती ही हैं इनकी तो यात् ही क्या है-परन पम्स २ गुप्त प्रक्षयारी छ, र पोतानी धन्द्रियो ५२ सयम रामेछ, आउ गच्छमाणस्स' 2. पयागपूब ४ गमन' ४२ छ, 'आउन चिट्ठमाणस्स' ने 642 १४ Gो थाय छ, 'आउत्तं निसीयमाणस'२५ये (यतनापूर छ. 'आउत्तं 'तुयट्टमाणस या भुई छे, 'आउत्तं वत्थ पडिग्गहकंबलपायपुच्छणं । पत्र, पान मस, पाहाछन, नर आ पिलाने यतना 'पू'४"गेण्डमाणस' व 'छे तथा मणिविवमाणम्स. नीय भजांच चक्खपम्हनियायमवि. गाने गामना भारवा यत. ક્રિયા પણ જે યેતનાપૂર્વક કરે છે આંખની પાંપણે પણે સાવધાનતાપૂર્વક હલાવે છે તો પણ તેને સક્રિય માનવામાં આવેલં છે અને તેને કમબધં બંધાય છે. એમ કહે છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તે અણગીર ઉપર્યુંકતક્રિયાઓ ઘણું સાવધાનીપૂર્વ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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