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भगवती
पुत्रो नाम अनगारः प्रकृतिमदको यावद - पर्युपासीनः एवम् अत्रादीत-कति भगवन् ! क्रियाः भक्षप्ताः ? मण्डितपुत्र ! पत्रक्रियाः मङ्गताः, तद्यया- कायिकी आधिकरणिकी, पापिकी, पारितापनिकी, माणातिपात क्रिया, कायिको ल भदन्त 1 क्रिया कतिविधा प्रज्ञता ? मण्डितपुत्र ! द्विविधा महता, तद्यथा-भनु
पडिगया) यावत् परिषदा निकली, प्रभुने उसको धर्मोपदेश दिया, धर्मोप देश सुनकर वह परिषद अपने २ स्थान पर वापिस गई। (तेणं कालेणं तेणं समरणं) उसकाल और उस समय में (जाव अंतेवासी मंडियपुते णामं अणगारे पगइमद्दए जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी) यावत् अन्ते. वासी मंडितपुत्र नामके अनगारने जोकि प्रकृतिभद्र थे यावत् पर्यु पासना करते हुए प्रभु से इस प्रकार पूछा- (कणं भंते । किरियाओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! क्रियाएँ कितनी प्रकार की कही गई है ? (मंडियपुत्ता पंचकरियाओ पण्णत्ताओ) हे मंडितपुत्र । क्रियाएँ पांच प्रकारकी कही गई है । (तंजा) वे इस प्रकार से हैं (काइया अहिगरणिया पाउसिया, परियावणिया, पाणावायकिरिया ) कायिकी क्रिया, आधिकरणिकी क्रिया, प्रादेषिकी क्रिया, पारितापनिकी क्रिया और प्राणातिपातनिकी क्रिया । (काइया णं भंते । किरिया कहबिहा पण्णत्ता) हे भदन्त । कायिकी
ત્યાં મહાવીર પ્રભુ પધાર્યાં. તેમના ધર્મોપદેશ સાંભળવા પરિષદ નીકળી. અને ધર્મોપદેશ सांभणाने परिषद विध्मरार्ध, इत्याहि समस्त सूत्रपाठ ४२. (वेणं कालेणं तेणं समरणं) ते अणे अने ते सभये (जाब अंतेवासी मंडियपुत्ते णामं अणगारे पगइभद्दए जाव पज्जुवासमाणे एवं नयासी) भक्तिपुत्र नाभना आयुशार, , भा વીર પ્રભુના એક શિષ્ય હતા. તેએક સરળ સ્વભાવના હતા. (બીજા ગુડ્ડા આગળ મુજબ સમજવા) તેમણે વંદણા નમસ્કાર આદિ કરીને વિનયપૂર્વક આ પ્રમાણે પૂછ્યું भंते!- किरिया पण्णत्ताओ ? ) हे अहन्त ! दिया उसी अरनी डॉय छे ? (मंडियपुत्ता !) डे भडितपुत्र ! (पंचकिरियाओं पण्णत्ताओ डियाना पांय प्रहार छे. (तं जहा) - ते अाश नीचे प्रमाणे छे- (काइया: अडिगरणिया पाउ सिया, परियावणिया, पाणाइवायकिरिया) अयिडी डिया,, - व्याधिरथिडी: प्रिया, आद्वेषिडी प्रिया, पारितापनि डिया, अने भातियातनी किया. (काइयाणं भंते!
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किरिया कइत्रिहा पण्णत्ता ) के महन्त ! आयिडी डियाना ईसा सार छे
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