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________________ - - - भगवतीको देवानमियाः ! 'माया श्रमणं भगवन्तं महावीरं निश्रया शक्रो देवेन्द्रः, देवराजः स्वयमेव अत्पाशातितः, ततः खलु तेन परिकुपितेन सता मम बघायं वयं निःसप्टम् , तद्रं भवतु देगनुमियाः! श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य, यस्यास्मि प्रमाण अफ्लिएः, भव्यथितः, अपरितापितः, इह आगतः, इह समवसतः, इष्ट समाप्तः, इंडच अघ यावत् उपसंपघ विहरामि, तद्गच्छामो देवानुपिया। एवं चयासी ) इसके । पाद उम असुरेन्द्र असुरराज धमरने उन सामानिक परिपदा में उत्पन्न हुए देवासे इस प्रकार कहा ( एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए समणं भगवं महावीरं णीसाएसक्के देविंदे देवराया सयमेव अचासाइए) हे देवानुप्रियो ! मने श्रमण भगवान महावीर की निश्रा से देवेन्द्र देवराज शक को स्वयं ही शोभा से भ्रष्ट करने का प्रयत्न किया-उसका तिरस्कार किया (तए णं तेणं परिकृविएणं ममं वहाए वज्जे निसिहे तय कुपित होकर उस शक्रने मुझे मारने के लिये अपना वज्र फेंका परन्तु (तं भई णं भवतु देवाणुप्पिया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स) हे देवानुप्रियो । भगवान् महावीरका भला होवे (जस्स म्हि पभावेणं अकि, अन्वहिए, अपरिताविए, इह मागए, इह समोसढे, इह संपत्ते, इहेव अज जाव उवसंजिता णं विहरामि) कि जिस महा. वीर प्रभु के प्रभाव से मैं अक्लिष्ट, अव्यथित और अपरितापित होकर यहां आगया है, यहाँ समवसृत हुआ ह, यहां संप्राप्त हुआ हूं त्यारे ते मसुरेन्द्र मसु२२॥ यमरे त साभानि वान मा प्रभारी यु-- ( एवं खलु देवाणुप्पिया!) हेपानुप्रिया! (मए समणं भगवं महावीर पीसाए सक्के देविदे देवराया सयमेव अच्चासाइए) में श्रमाय नपान महावीरन माश्रय લઈને મારી જાતે જ દેવેન્દ્ર દેવરાજ શકને અપમાનિત કરવાના પ્રયત્ન કર્યા. (तएणं तेणं परिकुविएणं समाणेणं ममं वहाए वज्जेनिसिह) त्या पायभान थये तो भने भारताने भाटे 4 छ।यु, ५ (तं भई णं भवतु देवाणुप्पिया! समणस्स भगवओ महावीरस्स) वानुप्रियो ! ब. थाय ते श्रम लगवान भलावीनु (जस्स म्हि पभावेणं) भगना प्रमाथी ( अकिटे, अवाहिए, अपरिताविए, इहमागए, इह समोसढे, इह संपत्ते, इहेव अज्ज जाव उव. सपज्जित्ताणं विरामि) Asare, मध्यति, अने अपरितापित मही भाषा શક છું, અહીં સમવસત થયા . અહીં સંપ્રાપ્ત થયે છું [પહેરો છે અને
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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