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प्रमेयचन्द्रिका टी. श. ३ उ. २ सू. ७ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् त्रिवारम् इन्द्रकीलम् आकुट्टयति, एत्रम् अवादीत् - कुत्रभोः ! शक्रो देवेन्द्रः, देवराजः ? कुत्र ताथतुरशीतिसामानिकसाहरूयः ? यावत् - कुत्र ताश्चतस्रः चतुरशीतयः आत्मरक्षकदेव साहस्यः ? कुत्र ताः अनेकाः अप्सरः कोटयः ? अब हन्मि अद्य व्ययामि, अद्य मम अवशाः अप्सरसो वशमुपनमन्तु ? इति कृत्वा ताम् अनिष्टाम्, अकान्ताम्, अमियाम्, अशुभाम् अमनोज्ञाम्, अमनामाम्, परुपाम्, गिरं निःसृजति ॥ भ्रू० ७ ॥
asure करे ) वहां पहुंच कर उसने अपना एक पैर पद्मवरवेदिका के ऊपर रखा ( एगं पायं सभाए सुहम्माए करेड़) और दूसरा पैर सुधर्मासभा में रखा । (फलिहरयणेणं महया मया सद्देणं तिक्खुतो इंदकीलं आउडेए) बाद में उसने, जोरर से शब्दोचारण करते हुए तीन बार इंद्रकील को उस परिघरत्न से कूटा (एवं व्यासी) फिर वह इस प्रकार से कहने लगा (कहिणं भो सक्के देविंदे देवराया) अरे । वह देवेन्द्र देवराज शक कहां पर है । (कहिं णं ताओ चउरासीइसामाणियसाहसीओ) कहां पर उसके ८४ चौरासी हजार सामानिक देव है ? ( जाव कहिं णं ताओ चत्तारि चउरासीईओ आयरक्ख देवसाहस्सीओ) यावत् कहां वे चार चौरासी हज़ार (३३६००० तीनलाख छत्तीस हजार ) उसके अंगरक्षक देव है ( कहि णं ताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ) तथा कहां वे उसकी करोडों अप्सराएँ हैं (अज हणामि, अज वहेमि, अज्ज ममंअवसाओ अच्छराओ वसमुवणमंतु) मैं आज उन सबका उवागच्छ३) त्यां ते ४४ डेभ्यो ( एगं पायं पउमवर वेड्याए करेइ ) त्यांने तेथे तेना शेो४ यग पद्मवर वेहि उपर भूडयो. (एगं पायें सभाए सहम्माए करेइ) ખીજે પગ સુધર્માં સભા ५२ भूये. ( फलिहरणेणं महया महया सद्देणं तिक्खुतो इंदकीले आउडेए) त्यार माह भोटथी जूम मराठा पाडीने तेथे तेना परिधनरत्नथी ईन्द्रद्वीस पर नयुवत इटा भार्या भने ( एवं क्यासी) मा प्रभा ४ - (कणिं भो सक्के देविंदे देवराया) भरे ? मे देवेन्द्र देवराज श यां छे ? ( कर्हिणं भो सक्के देविंदे देवराया ) अरे! ते देवेन्द्र देवरान श_¥यां छे ( कहिणं ताओ चउरासी सामाणिय साहस्सीओ) तेना ८४००० सामानि देवे। यां छे ? (जाव कहिं णं ताओ वत्तारि चउरासीईओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ तेना ३४९००० ( यार योर्यासी बन्नर) आत्मरक्षा यां छे ? ( कहिणं ताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ) तेनी रोड। अप्सराओ। भ्यां छे ? (अज्ज हणामि,