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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३ उ.२ स. ५ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् ३९३ चितप्रार्थकः अमार्थितम् अनभीष्ट मृत्यु प्रार्थते यः स तथा 'दुरंतपंतलक्षणे' दुरन्तप्रान्तलक्षणः दुरन्तानि दुप्परिणामानि अत एवं प्रान्तानि अशुभानि लक्षणानि चिन्हानि यस्य स तथा अत्यन्तनिकृष्टलक्षणः 'हिरिसिरि परिवज्जिए' हीश्रीपरिवर्जितः तत्र हीः-लजा श्रीः-शोभा ताभ्यां वर्जितः स तथा निर्लजो निःश्रीयश्च 'हीणपुण्णचाउद्दसे' हीनपुण्यचातुर्दशः हीनायां पुण्यरूपायां चतुईश्यां जातः हीनपुण्यचातुर्दशः जन्मविपये चतुर्दशी तिथिः पुण्या गण्यते सा हि अत्यन्तभाग्यशालिनो जन्मनि पूर्णा भवति, अयंतु हीनायां तस्यां जातो न तु पूर्णायामत आक्रोशति-हीणपुण्येत्यादि । ___ अथवा कृष्णायां हि चतुर्दश्यां जातः चातुई शिक:, हीनं पुण्यं यस्य स हीन णं एस' अरे ! वह यह कौन है जो 'अपत्थिय पत्धिए' अप्रार्थित प्रार्थक-अप्रार्थित-अनभीष्ट (अनिच्छित) मृत्यु की चाहनाका अभिलापी हो रहा है, 'दुरंतपंतलक्खणे' मैं ऐसे व्यक्तिको बिलकुल निकृष्ट लक्षणों वाला मानता हूं अर्थात् उसके ये सब चिह्न दुरन्तदुप्परिणामवाले और प्रान्त-अशुभ है-वह 'हिरिसिरिपरिवज्जिए' ही-लज्जा, श्री शोभा इन दोनों से वर्जित बना हुआ है, 'हीणपुण्णचाउदसे' हीन पुण्यरूप चतुर्दशी में मैं समझता हूं उसका जन्म हुआ है-अर्थात् पुण्यहीन चौदसमें जन्म हुआ है, जन्मके समय में चतुर्दशी तिथि पुण्यरूप मानी जाती है । वह चतुर्दशी अत्यन्त भाग्यशाली के जन्ममें पूर्ण होती है । परन्तु यह तो हीनचतुर्दशीमें उत्पन्न हुआ मालूम देता है-पूर्णचतुर्दशीमें नहीं। अथवा-जो कृष्णपक्षकी चतुर्दशी में उत्पन्न होता है वह चातुर्दशिक है । तथा पुण्य एस' ५३ ! भा छ रेने 'अपत्थिय पत्थिए' भ२पानी ४२७। य/ छ ? 'अपत्थिय पत्थिए' भेटले "मप्रार्थित प्रार्थ:" मेटमनिट मृत्युनी मनिसाया કરના મૃત્યુ કોઈને ગમતું નથી. માટે તેને અપ્રાર્થિત [અનિચ્છિત] કહ્યું છે. એવા તને ચાહનારને “અપ્રાર્થિત પ્રાર્થક કહે છે. दुरंतपतलक्खणे' न समस्त पक्ष परिणामवाण भने अशुभ छे. 'हिरि सिरि परिवज्जिए' २-arm भने श्री माथी २हित छ, 'हीणपुण्णचउद्दसे' भने सभागेतनाभ पुश्य हीन यो थयो दागे छ. यो शना જન્મને પુયરૂપ માનવામાં આવ્યો છે. કેઈ ભાગ્યશાળીના જન્મ દિવસે જ તે ચૌદશ પૂર્ણ હોય છે. પણ અહીં તે શક્રેન્દ્રને હીન ચૌદશે જન્મેલો માન્યો છે–પૂર્ણ ચૌદશેનીં. અથવા જે કૃષ્ણપક્ષની ચૌદશે જન્મે છે તેને ચાતુર્દર્શિક (ચૌદૃશયો) કહે છે. તથા
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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