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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटोका श. ३ उ.२ सु.५ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् ३८३ पञ्चविधया पर्याप्त्या पर्याप्तिभावं गच्छति, तद्यथा-आहार-पर्याप्त्या, यावत्भाषा-मनः पर्याप्त्या, ततः स चमरोऽसुरेन्द्रः, असुररानः पञ्चविधया पर्याप्त्या पर्याप्तिभाव गतः सन् ऊर्ध्वम् विस्रसया अवधिना आभोगयति यावत् सौधर्मः कल्पः, पश्यति च तत्र शक्रं, देवेन्द्र देवराजम् मघवानम्, पाकशासनम् शतक्रतुम् सहस्रोक्षम् , बज्रपाणिम् , पुरन्दरम् यावत् दशदिशाः उद्योतयन्तम् , प्रभासयन्तम् , सौधर्मकल्पे सौधर्मेऽवतंसकेविमाने शक्रे सिंहासने यावत्-दिव्यान् भोगभोगान भुञ्जानं पश्यति, अयम् एतद्रूपः आध्यात्मिकः पांच प्रकार की पर्याप्तियों द्वारा पर्याप्तकभाव को प्राप्त किया। (तंजहा) वे पांच प्रकार की पर्याप्तियां इस प्रकार से है-(आहारपज्जत्तीए, जाव भासमणपजत्तीए) आहारपर्याप्ति यावंत भापापर्याप्ति, मनः पर्याप्ति। इन पांच पर्याप्तियों से पर्याप्त होने के साथ ही (उड वीससाए ओहिणा आभोएइ) उसने ऊंचे की ओर स्वाभाविकरूप से अपने अवधिज्ञान के द्वारा देखा (जाय सोहम्मो) यावत् सौधर्मस्वर्गतक। (तत्थ) उस सौधर्मकल्पमें उसने (सक) शक्र, (देविंदं) देवो के इन्द्र, (देवराय) देवों के राजा (मघवं) मघवा (पाकसासण) पाकशासन (सयक) शतक्रतु (सहस्सक्खं) सहस्राक्ष (घजपाणि) वज्रपाणि (पुरंदरं) पुरन्दर को (पासइ) देखा। इन्द्र को किस स्थिति में देखा-इस चात को प्रकट करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि-(जाव दसदिसाओ उज्जोवेमाणं पभासेमाणे सोहम्मेकप्पे, सोहम्मे वडिसए विमाणे, सकसि सीहासर्णसि जाव दिन्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणं पासइ) पन्यो (तंजहा) ते पाय पर्याप्तियो नाये प्रभारी छ (आहारपज्जत्तीए जाव भास मणपज्जत्तीए) माहार पर्याप्तिथा २३ ४शन सापापति भने भनपास्ति सुधानी પાંચે પર્યાપ્તિયો આ પ્રમાણે પર્યાપ્તિયોની પ્રાપ્તિથી પર્યાપ્ત બનેલા તે ચમરેલ્વે (उ९ वीससाए ओहिणा आभोएइ) पाताना अपविज्ञानथी पामाविशते ये नयु (जाय सोहम्मो) सौधर्म वसो सुधा ते अधिज्ञानयानयु (तत्थ) तर ते साधम पक्षमा (सकं देविंदं देवराय मधवं पाकसासणं सयक्कडं सहस्सक्ख वज्जपाणि पुरंदरं पासइ) देवेन्द्र, वशी, भपा (मेघ ५२ रामना), पाशासन (જેના આજ્ઞા બળવાનમાં બળવાન શત્રુ પર પણ ચાલે છે), શતકતું, સહસ્ત્રાલ, વજાપાણિ (सयम Animl), पु४२, (असुर माहिना नगरानी विनाश ने लयो. (जावदस दिसाओ उज्जोवेमाण पभासेमाणं सोहम्मे कप्पे, सोहम्मे वर्डिसए विमाणे, सकसि सीहासणंसि जाब दिन्वाई भोगभोगाइं मुंजमाणं पासइ)ते समयेश पाताना
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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