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“मगणनीय मुलभयोधिकः ? दुर्लभयोधिका ? आराधका विराधकः ? नरमः ! परमः! गौतम ! सनत्कुमारः देवेन्द्रो देवरानः भवसिद्धिकानो ममवसिदिका,एवं सम्मा रष्टिः, परीतसंसारकः, मुलगोधिकः, आराधकः, रम:-प्रशस्तं प्रातभ्यम् ।
वन केनार्थेन भगवन् ! एवम् उच्यते ? गौतम ! सनत्कुमारो देवेन्द्रो देवरानः पहूनां श्रमणानाम्, बडीनाम् श्रमणीनाम्, बहनां श्रावकाणाम, वडोनाम् श्राविकाणाम् हितकामुकः, मुखकामुकः पथ्यकामुका, आनुकम्पिका अनन्त संसारवाला है ? (सुलभयोहिए, दुलमयोहिण) सुलभबोधिवाला है! या दुर्लभयोधिवाला है। (भाराहप विराहप) आराधक है। कि विराधक है (चरिमे अचरिमे) घरमभ्यवाला है । कि अचरमभावाला है। (गोयमा) हे गौतम! (सणकुमारे देविदे देवगया भवसिखिए) देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार भवसिद्धिक है। (नो अभवसिद्धिए) अमर सिद्धिक नहीं है। (एवं सम्मदिट्टी, परित्तसंसारए, सुलभयोहिए, आरा हए, चरमे पसत्थं नेयन्व) इसि प्रकार से वह सम्यक दृष्टि है, परात संसारपाला है; सुलभयोधिवाला है, आराधक है, चरमभववाला है, व सय प्रशस्त यातें उसमें हैं। (से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ) हे भदन्त । भाप ऐसा किस कारण से कहते है कि यह सनत्कुमार इन सा प्रशस्त गुणोंसे युक्त हैं ? (गोयमा) हे गौतम । (सणकुमारे देविदे दव राया बहुणं समणाणं यहणं समणीण, यहणं सावयाणं, घरणं सा वियाणं हियकामए, सुहकामए, पत्यकामए आणुकंपिए, निस्सयसिए, पीहिए, दुल्लभघोहिए ) तेरा सुहम नाधिपणा ® है दु hिatun s? (आराहए विराहए) मारा छे । ५४ छ ? (चरिमे अचरिमे) यम म. qtut छ? भयभ माणा (गोयमा) गौतभा (सणकुमारे देविदे देवराया भवसिद्धिए) हेवेन्द्र शासनामार सिद्धि (नो अभवसिद्धिए) सिद्धिनी. (एवं समट्टिी , परित्तसंसारए, सुलभवोहिए, आराहए, चरमे पसत्थं नेयव्य) એજ પ્રમાણે તેઓ સમ્યક્ દષ્ટિ છે, અલ્પ સંસારવાળા છે, સુલભ બધિવાળા છે, આરાધક છે અને ચરમ ભવવાળા છે. એ સઘળી પ્રશસ્ત બાબતેથી તેઓ યુકત છે, (से केणटेणं भंते! एवंबुचड़ ?) Hind! ५ श णे श है। छ। वन्द्र सनमा२ ०५४ सा प्रशस्त गुवाहा छ ?. (गोयमा!) गौतम! (सणंकुमारे देविदे देवराया बहूणं समणाणं यहणंः समणीणं, वहणं सावयाणं बर्ण सावियाण हियकामए, सुहकामए, पत्यकामए आणुकंपिए; निस्सेयसिए,