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म.टी. श.३ उ.१ सू.२२ २ सू. २६ ईशानेन्द्र स्थिनिरूपणम् २७३ ठिई पण्णत्ता! 'ईसाणं भंते ! देविदे, देवराया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, जाव-कहिंगच्छिहिति, कहिं उववजिहिति ? गोयमा ! महाविदेहेवासे सिज्झिहिति, जाव - अंतं काहिइ ॥ सू० २६ ॥
छाया-ईशानस्य भदन्त ! देवेन्द्रस्य, देवराजस्य कियन्तं कालं स्थिति:प्रज्ञप्ता ? गौतम ! सातिरेके द्वे सागरोपमे स्थितिः प्रज्ञप्ता । ईशानो भगवन् ! देवेन्दः, देवराजः तस्मात् देवलोकात आयुःक्षयेण यावत् कुत्र गमिष्यति ? इति, कुत्र उत्पत्स्यते इति ? गौतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति इति, यावद अन्तं करिष्यति ॥ मू० २६ ॥
व्याख्या निगदसिद्धा ॥ मृ० २६ ॥
'ईसाणस्स भंते देविंदस्स देवरणो' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-ईसाणस्स भंते ! देविंदस्स देवरण्णो केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज ईशान की स्थिति कितने कालतक की कही गई है ? (गोयमा ! साइरेगाई दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता) हे गौतम ! ईशानेन्द्र की स्थिति दो सागर से कुछ अधिक कही गई है। (ईसाणेणं भंते ! देविंदे देवराया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव कहिं गच्छिहिइ कहिं उववन्जिहिइ ?) हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज ईशान उस वलोक से मायुके क्षय के बाद यावत् कहां जावेगा ? कहां उत्पन्न होगा ? (गोयमा! महाविदेहे वासे सि
"ईसाणस्स भंते देविंदस्स देवरणो" या
सूत्रार्थ-ईसाणस्स भंते ! देविंदस्स देवरणो केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) હે ભદન્ત! ઈશાન દેવલોકના દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાનની સ્થિતિ (તે પર્યાયમાં રહેવાને आण) 32&i नाही ? (गोयमा! साइरेगाइं दो सागरोचमाई ठिई पण्णत्ता) હું ગોતમ! ઇશાનની તે પર્યાપમાં રહેવાની સ્થિતિ કાળ મર્યાદા બે સાગરોપમથી पय मधि: समयनी ही है-(ईसाणेणं भंते ! देविदे देवराया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव कहिं गाच्छहिइ कहिं उपवज्जिहिइ ?) Ad! २२-६ ६१२१ शान समाथा सायना अयशन यांन? (गोयमा! महाविद