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________________ २७० भगवती दिव्यादेवयुतिः दिव्यो देवानुभागः, लन्धः मातः इति संयमन्ते।" दिवाणं' सा दिव्यानां 'देवाणुपियाणं' देवानुप्रियाणां भवतां दिव्या देवगि 'जाव-लद्धा' यावत् लब्धा 'पत्ता' माता 'अभिसमण्णागया' भभिसमनागवा अस्माभिरपि सम्यग् दृष्टा, यावत् पदेन 'दिव्या देवगुतिः दिव्यो देवानुमागा' इति संग्राह्यम् । तं सामेमो' तत्क्षमयामः 'दाणुप्पिया! देवानुप्रिया। 'खमंतु' क्षमन्ताम् देवानुमिया: ! 'यमंतु ' मरिहंतु ' क्षमितुम् आन्तु 'देवागुप्पिया' देवानुमियाः । 'गाई' व 'भुजो मुन्नो' भूयोभूयः एवम् 'करम याए' करणाय उपर्युक्तभवच्छरीरावर्णणाघवहेलनाजन्यापराधम् कर्तुम् उपता भविष्यामः तिकटु' इति कृत्वा 'एयमह' इममर्थम् पूर्वोक्तापराधपरिहाराय स्वकल्याणार्थ वा सम्मे' सम्यग् 'विणएणं' बिनयन मुजो भुनो' भूयो लब्ध की हुई, प्राप्त की हुई और समक्ष उपभोग में आई हुई दिव्य देवदि हमने भी देखली है। 'तं खामेमो देवाणुप्पिया' इस प्रकार आपके अनुपम प्रभाव से प्रभावित होकर हम आप से है देवानुप्रिय ! अपने अपराधोंकी क्षमा मांगते हैं। 'खमंतु देवाणुप्पिया हे देवानुपिय आप हमें क्षमा करिये 'खामंतु मरिहंतु णं देवाणुप्पियाः हे देवानुमिय । आप क्षमा प्रदान करने के योग्य हैं। 'णाई भुनो भुज्जो एवं करणयाए' अप आगे हम ऐसा भयंकर अपराध उपयुक्त आप के शरीर का अवघर्पण आदि हेलना जन्य अपराध करने के लिये स्वप्न में भी उद्युक्त नहीं होंगे 'त्तिक?' इस प्रकार कहकरके 'एयमढ सम्मं विणएणं' पूर्वोक्त अपराध की क्षमा के निमित्त अथवा अपने कल्याण के निमित्त 'सम्म' बहुत ही अच्छी तरह से 'विणકરી છે અને આપને માટે ઉપગ્ય બનાવી છે, તે દિવ્ય દેવદ્ધિ આદિ જેવાની તક આજે અમને મળી ગઈ છે– અમને આપની દિવ્ય તેજલેશ્યાને આજે અનુભવ થયા छ. सापना हिव्य प्रभावी प्रभावित न "तं खामेमो देवाणुप्पिया" भने 14- पासे सभा। अपराधे भारी क्षमा मागे छी, "खमंत देवाणप्पिया" वानुप्रिय ! आय समने क्षमा उरी. " खामंतु मरिहंतु णं देवाणुप्पिया " वानुप्रिय ! अमे मापनी क्षमान पान छोय. "णाई मुज्जो भुज्जो एवंकरणयाप" હવે અમે સ્વપ્નમાં પણ એ પ્રકારને (આપનું અપમાન, અવહેલના આદિ) અપરાધ नहीं शये. "तिक प्रभारी हीन “ एयम सम्मं विणएणं " पोत अपराधोनी समाने भाटे "सम्म विणएणं भुज्जो भुज्जो खामें ति" तभ) मो.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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