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________________ २३२ भगवतीसूणे सर्वदिकोणेषु 'ठिचा' स्थित्वा दिव्यां देवर्द्धिम् विशिष्टत्रिमान परिवारादिरूपाम् देवद्युतिम्, विशिष्टशरीरा मरणादिमभाभास्वररूपाय दिव्यं देवानुभागम् अचिन्त्व प्रभावयुक्तम् 'दिव्यंत्तीसविहं नहिं उपदेसेति' दिव्यं द्वात्रिंशदविधं नाटयविधिश्च उपदर्शयन्ति 'उपदेसिया' उपदस्ये उपर्युक्त देवदीदिनाटय कलाप्रदर्शनानन्तरं ते अमरकुमारदेवाः देव्यथ नामलि वातपस्विनम् 'रित्तो ' त्रिवारम् "आयाहिणं पयादिणं' आदक्षिणपदक्षिणम् ' करेंति' कुर्वन्ति अझ लिपुटं बद्धा तं बद्धाञ्जलिपुटं दक्षिण कर्णमूलतः आरभ्य ललाटदेशेन बामकर्णा , वह स्थान सपक्ष है | पक्ष पद से यहां चारों दिशाए ग्रहण को गई है। तथा 'समतिदिशम् ' पद से इस व्युत्पत्ति के आधार से कि "जिस स्थान में ईशान, आग्नेय, नैर्ऋत्य और वायव्य ये चार कोणे समान हो' ये ईशानादि ग्रहण किये हैं। 'दिशा' ऊपर में चारों दिशाओं में और चारों कोनों में खडे होकर उसने पहिले तो 'दिव्वं देवि, दिव्वं देवज्जुह" विशिष्ट विमान परिवार आदिरूप दिव्य देवद्विका, विशिष्ट शरीराभरण आदि की प्रभासे भास्वररूप दिव्य देवद्युति का, अचिन्त्यप्रभाव से युक्त 'दिव्वं यत्तीसविहं नहविहं दिव्य ३२ प्रकार की नाटयविधिको दिखाया । 'उवदं सित्ता' यह सम दिखलाकर के फिर उन असुरकुमार देवोंने और उनकी देवियोंने 'तामलिं चालतयस्सि' बालतपस्वी उन तामली की 'तिक्खुत्तो' तीनवार 'आयाहिणपयाहिणं करेंति' आदक्षिण प्रद क्षिणा की इस आदक्षिणप्रदिक्षिणा में दोनों हाथों की अंजलि जोडी जानी है-की जाती है- बाद में उस अंजलि को दक्षिण कर्णमूल से प्रारंभसूत्रभां गापेक्षा "सपखि" पहा अर्थ सपक्ष थाय छे भने 'पक्ष' पथा यारे मुख्य हिंशामा श्रद्धयु ४२वामां आवी छे, “समतिदिशम् " पहा यारे थ हराया है. "ठिचा" यारे हिशा भने थारे भी उपर रो रहो, तेभो यस "दिव्यं देविडिं, दिव्वं देवज्जुई" विशिष्ट विभान परिवार माहिश्प द्दिव्य हे वर्द्धिथी યુકત, શારીરિક કાન્તિ અને આભૂષણાદિની પ્રારૂપ દિવ્ય દેવધુતિ અને મહાપ્રભાવથી दिव्वं वत्तीसविहं नहविहं " ૩૨ પ્રકારની દિવ્ય નાટયકલાં તેમને तावी " उपसित्ता " हिव्य नाटयक्ष्सा संतांचीने तेथे “तामलि बालतंवरिंस " णांलतपस्वी ताभलिने • तिक्खुत्तो" युवार " आयादिण पर्यााहिणं करेंति " વિધિપૂર્વક વંદાં નમસ્કાર કર્યાં, ` તેની વિધિ નીચે પ્રમાણે છે. અને હાથને જોડીને · ઋજલ બનાવવાંમાં આવે છે; પછી જમા કુનિનાં મૂળ 64 યુક્ત
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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