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________________ म.टी. श. ३. उ.१ २.२२ वलिचंचाराजधानिस्थदेवादिपरिस्थतिनिरूपणम् २२७ 'सदावेत्ता' शब्दयित्वा 'एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अवादिपुः- भोदेवानुमियाः ! एवं खलु उक्तरीत्या पलिचचा राजधानी अधुना 'अगिंदा' इन्द्ररहिता 'अपुरोहिआ' पुरोहितरहिता च वर्तते 'अम्हेयणं' वयं च खल भोदेवानुमियाः ! 'इंदाधीणा' इन्द्रवंशवर्तिनः इंदाधिटिया 'इन्द्राधिष्ठिता इन्द्राधारस्थिताः अतएव 'इंदाधीणकज्जा' इन्द्राधीनकार्याः इन्द्राधीनं कार्य येषां ते तादृशाः- वयं वर्तामहे इत्यर्थः, 'अयं च देवाणुप्पिया ! तामली वालतबस्सी तामलित्तिए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिभे दिसिभागे नियत्तणियमंडलं आलिहिता संलेहणा जसणाजूसिए भत्तपाणपडियाइक्विए पाओवगमणं' अयश्च तामली वालतपस्वी ताम्रलिप्त्यानगर्याः यहिः उत्तरपूर्वदिगन्तराले निवर्तनिकं मण्डलमालिख्य संलेखनाजूपणापितः परित्यक्तभक्तपानः पादपोपगमननामकं संस्तारकं 'निवण्णे' निष्पन्नः तेन'अण्णमण्णं' आपस में एक दूसरे को उन्होंने बुलाया। 'सदावेसा' घुलाकर 'एवं' इस आगे कहे जाने वाले प्रकरण के अनुसार 'क्यासी' कहा हे देवानुप्रियो ! उक्तरीति के अनुसार पलिचंचाराजधानी इस समय 'अजिंदा' इन्द्ररहित और 'अपुरोहिया' पुरोहितरहित हो रही है। और 'अम्हेयणंच' हे देवानुप्रियो ! अपन लोग तो 'इंदाधीणा' इन्द्र के यशवर्ती होकर रहने वाले हैं। 'इंदाधिट्ठिया' इन्द्र के आधार से सहारे से रहने वाले हैं, 'इंदाधीणेकजा' समस्तकार्य इन्द्र के ही सहारे से होता हैं। अतः यह बालतपस्वी जो तामली है कि जिसने ताम्रलिप्ती नगरी के यहार ईशानकोण में निर्वर्तनिक मंडल लिखकर संथारा धारण कर रखा है. चारों प्रकार का आहार यावज्जीव परित्याग करके जो पादपोपगमन संथारा में तत्पर यना हुआ तमो मे मीन मालाव्या. "सहावेत्ता एवं पयासी" सापाने तेभरे मापसभi प्रभारी वातयात शिवानुप्रिया! मलय या पानी सभा "अर्णिदा" धन्दि विनानी छ भने "अपरोहिया" पुड़ितथा ५५ २81 . " अम्हे य णं च इदाधीणा" मन मापणे ने अधीन रहेना। छीमे, "इंदाधिट्रिया" छन्द्रने माश्रये २ना। छा, "इंदाधीणकजा" माप! सभरत यो saal આજ્ઞા અનુસાર થયા કરે છે. તે નીચે દર્શાવ્યા પ્રમાણે કરવામાં જ આપણું શ્રેય છે. તામઢિી નારીની આ કથા કરતનિ, મ ળ આલેખીને (સ્થાનની મર્યાદા દર્શાવતી રેખા દોરીને), ચારે પ્રકારના આહારને જીવનપર્યંત ત્યાગ કરીને, પાદપપગમન સંથારે કરી રહેલા બાલતપસ્વી મૌર્યપુત્ર તામલિ પાસે જઈને બલિ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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