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________________ प्रमेयंचन्द्रिका टीका श. ३. उ. १ सू० २१ तामलीकृतपादपोपगमनम् २१.६ सेततः धमनीव्याप्तः 'जाए' जातोऽस्मि 'त' तत्तस्मात् ‘कारणात - 'अत्थिं, जावमे उठाणे' अस्तिं यावत् मम उत्थानम् उत्थानशक्तिः चेष्टाविशेषः 'कम्मे'. कर्म भ्रमणादिक्रिया 'बले' बलम् शरीरसामर्थ्यम् 'पीरिये वीर्यम् आत्मवलम् 'पुरिसक्कारपरक्कमे' पुरुपकारपराक्रमः पौरुषाभिमानसामर्थ्यम् वीर्यान्तरायक्षय क्षयोपशमरामुत्थनीवपरिणामविशेषरूपा उत्थानादयो बोध्याः 'तावतामेसेयं वावत् मम श्रेयः कल्याणावसरः विहर्तुमित्यग्रेणान्वयो योध्या, तदेवोपपादयति'कल्लं जाय जलंते' इत्यादि । कल्यं श्वोदिने यावत् ज्वलति सूर्यः प्रकाशते प्रभातं भवति, यावत्पदेन राज्यवसान-प्रभानादि गम्यते; 'तामलित्तीए' ताम्रलिप्याः ‘नगरीए' नगर्याः 'दिट्ठा भट्टेय' दृष्टामापितांश्च दृष्टान इस कारण उनके सद्भाव में जो शारीरिक शिराएँ देखने में नहीं आतीथीं वे अब एक एक करके गिनी जा सकती हैं। यही बात 'धमणिसंतए' इस पद द्वारा प्रदर्शित की गई है। 'तं' इसलिये 'अस्थि में जाच उट्ठाणे' जबतक मुझ में स्वयं उठने की शक्ति है, 'कम्मे' भ्रमण करने की शक्ति है, 'बले' शारीरिक मामर्थ्य है, 'वीरिये' आत्मयल है 'पुरिसकारपरफमे' पौरपाभिमान सामथ्र्य हैं, ये सब उत्थानादिक वीर्यान्तराय कर्मके क्षय और क्षयोपशम से उत्पन्न होते है और जीव के परिणाम विशेषरूप माने गये हैं। 'तावता' तबतक 'मे सेयं मेरा कल्याण इसी में है कि मैं 'कलं' आगामी दिवस 'जाव जलते' जय कि सूर्य का उदय हो जाता है रात्रिका अवसान हो जाता है और प्रभात हो जाती है-तय तामलित्तीए नयरीए' ताम्रलिप्त नगरी के पूर्व में 'दिहा भटेय' हेमा मासी छ. भाई शरीर खायामाना भामा न्यु या यु छ. तो "अत्थिमे जावउहाणे" या सुधी भाni Iनी सहित , “कम्मे" ७२५। ५२५।मी त छ, 'बले' २४ सामथ्य , "वीरिये' आत्मण छ, 'पुरिसक्कारपरक्कम' पौरपालिमान सामय छ, (उत्थान मा ५२४ शतियानी उत्पत्ति वीर्यातसय ४मना क्षय भने क्षयोपशमयी थाय छ) 'तावता' या सुधी 'मे सेयं તેને નીચે દર્શાવ્યા પ્રમાણે ઉપયોગ કરી લેવામાં જ મારૂં શ્રેય છે હવે તેમણે તે ઉત્થાનાદિ શકિતને ઉપયોગ કરી લેવાને સંકલ્પ કર્યો તે સૂવકાર બતાવે છે'कलं' भापत ४is 'जाव जलंते' रात्रि पूरी यधने न्यारे प्रात: य-यारे । सुयाय 40 स्यारे 'तामलिनीए नयरीए'तालिसी नाम MA. 'दिद्या
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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