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________________ १९८ भगवतीमु सूर्याभिमुख आतापनभूमी आतापयन् आठापनां कुर्वन् विहरति तिष्ठति षष्ठस्यापि पूर्वोत्तपः कर्मणः पारणके पारणासमये आतापन भूमितः प्रत्यवरोहति अवतरति मत्यवरुप अवतीर्य स्वयमेव दारुमयं प्रतिग्रहम् आहारपात्रं गृहीत्वा ताम्रलिया नगर्याः उच्च-नीच मध्यमानि कुलानि भिक्षाचर्यया भि क्षाचरणेन अटति भिक्षार्थे गच्छति, शुद्धोदनं प्रतिगृह्णाति त्रिसप्तकृत्वः एक विंशतिवारान् उदकेन प्रक्षालयति, ततःपधात् आहारम् आहारयति इत्येतावता सूत्रेण मत्रजितस्य ताम्रलिप्तस्य तपश्रर्यादिकरण पूर्व कमवज्यो चितनियमादि परिपालनमुक्तम् ॥ ० ॥ १९ 'आग्रावणभूमीए आयावेमाणे विहरह' आनापनाभूमि में आतापना लेने लग गया 'छस्स विघणं पारणयंसि आगावणभूमीओ पच्चोरुहरू' तथा जब छकी पारणा का दिन होता तब वह आतापना भूमि से उतरता और 'पच्चो हित्ता' उत्तर करके 'सयमेव दारुमयं परिगई गहाय' अपने आप ही दारुमय पात्र को लेकर 'तामलित्तीए नयरीप' ताम्रलिप्ती नगरी में 'उच्चनीय मज्झिमा कुलाई' उचनीच मध्यम घरों में 'घर समुदाणस्स' गृह समृह की 'भिक्खायरिया' भिक्षाप्राप्ति के निमित्त 'अड' घूमता, भिक्षा में 'सुद्धोयणं पडिग्गाहह' मात्र शुद्ध भात ही लेता और उसे फिर अपने स्थान पर लाकर 'तिसत्तक्खुनो २१ बार 'उदरणं' पानी से 'पक्खालेह' धोता 'तओ पच्छा आहार आहरेह' बाद में फिर उन्हें खाता, इतने सूत्र से सूत्रकार ने प्रत्रजित ताम्रलिप्स ने तपश्चर्यादिकरणपूर्वक प्रव्रज्या के लायक नियमा दिकों का पालन किया यह कहा है | || सू० १९ ॥ આ તપસ્યા દરમિયાન તે અન્ને હાથ ઉંચા રાખીને, સુર્યની તરફ મુખ રાખીને आयraणभूमिए आयावेमाणे विहरइ" तडवाणी भूमिमां भातापना होता इता. "छवि य णं पारणयंसि आयावणभूमीओ पञ्च्चोरुहइ" छडना पारखाने हिवसे तेथे। आतापना लूभियस्थी नीचे उतरता हता. “पञ्च्चोरुहित्ता” त्यांथी उतरीने "सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय" पोताना हाथमां न पात्र बने " तामलित्तीए नयरीए" ताम्रलिप्ती नगरीभां "उच्चनीचमज्झिमाई कुलाई घरसमुद्राणस्स" ॐथ, नीथ भने मध्यम पुणमां - गृहसमुहानी “भिक्खायरियांए " भिक्षा प्राप्ति मर्थे “अडइ" इश्ता ता. "सुद्धोयणं पडिग्गाहइ" ते शुद्ध सातन बद्धोरता इता. "तिसत्तक्खुत्तो उदपणं पक्खालेइ" ते भातने २१ વખત શુદ્ધ અચિત્ત પાણીથી. ધેતા હતા "तओ पच्छा आहारं आहरेइ "
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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