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________________ भगतीने - - पवइए वियणं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिणइ कप्पइ मे जावजीवाए छठे छठेणं, जाव-आहारित्तए ति का इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिता जावजीवाए छठें छठेणं अणिकिखत्तेणं तवोकम्मेणं उड़द वाहाओ पगिज्झिय पगिझिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ छटस्सवि. य गं पारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ पच्चो महत्ता सममेव दारुमयं परिग्गहं गहाय तामलित्तीए नयरीए उच्चनीअ-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ, अडित्ता सुद्धोयणं पडिग्गाहइ, तिसत्तकखुत्तो उदएण पक्खालेइ, तओपच्छा आहारं आहरेइ ॥ सू० १९ ॥ ___ छाया-एवं खलु गौतम ! तस्मिन् काले, तस्मिन समये इहैव जम्बूद्वाप द्वीपे भारते वर्षे ताम्रलिप्ती नाम नगरी आसीत् वर्णकः तत्र ताम्रलिप्त्यां नगया तामली (ताम्रलिप्तो) नाम मौर्यपुत्रो गाथापतिरासीत् आढयः, दीप्तः, यावत् 'एवं खलु गोयमा!' इत्यादि सूत्रार्थ- (एवं खलु गोयमा!) हे गौतम! सुनो इसका कारण इस प्रकारसे है (तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल में और उस समयमें (इहेव जंबूदीवे दीवे मारहे वासे तामलिली नाम नयरी होत्या) इसी जंवृद्धीपमें स्थित भारतवर्पमें ताम्रलिप्सी नामकी एक नगरी थी। (चण्णी ) वर्णक (तत्थ णं तामलित्तीए नयरीए) उस ताम्रलिती नगरीमें (तामिली नाम मोरियपुत्ते गाहावई होत्या) तामिली इस "एवं खलु गोयमा !” त्यात सूत्रार्थ - (एवं खलु गोयमा!) गौतम! तेनुं २५ सी . ( तेणं कालेणं तेणं समएणं) ते णे भने ते समय (इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे तामलिती नाम नयरी होत्था) मा दीपभां आवे भारतवर्षमा तातhl नामे नाती . (वष्णभओ) पाना तेनुं वन समrg. (तस्थणं तामलित्तीए नयरीए) वालिसी नगरीमा तामिली नाम मोरियपुत्ते गाहावई
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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