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________________ भगवतीसूत्रे निक-त्रयस्त्रिंशकादीनां समृद्धिविकुर्वणादेः स्वरूपाणि भगवतः सकाशात् याथातथ्येन सम्यगाकर्ण्य द्वितीयो गणधरोऽग्निभूतिः प्रभोः कथनस्य प्रामाणिकतया पौनःपुन्येनाऽनुमोदन यावत्-संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरति इत्याशयेनाह - 'सेवं भंते ! सेवं भंते । नि' 'दोघे गोयमे जाव विहरइ ' इति तदेव भगवन् ! तदेव भगवन् । इतिवारद्वयोच्चारणेन तद्वचनोपरि विश्वासातिशयधोत द्वारा भगवन्तम्मति अभिभूतेः श्रद्धातिशय आदरातिशयश्च शास्त्रकृता • प्रतिपादितः ।। सू० १२ ॥ ॥ ईशानेन्द्रस्य महर्द्धिचिकु णावक्तव्यतामस्तावः ॥ मूलम्— 'भंते! त्ति, भगवं तच्चे गोयमे वायुभूई अणगारे समणं भगवं जाव - एवं वयासी - जइणं भंते ! सक्के देविदे, देवराया एवं महिडीए, जाव एवइयं च णं पभू विउब्वित्तए, जो अन्य सामानिक देव एवं त्रास्त्रिक आदि देव है उनकी समृद्धि विकुर्वणा शक्ति आदि भय तिष्यक देवकी तरह ही है ऐसा भगवान के मुखसे अच्छी तरहसे जानकर द्वितीय गणधर देवकी तरहही है ऐसा भगवान् से उनके वचनोंमें प्रामाणिकता होने के कारण जो कहा वही 'सेवं भंते! सेवं भंते' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रगट किया गया है । "त्ति दोच्चे गोयमे जाव विहरइ" इस प्रकार कह कर द्वितीय गणधर देव अग्निभूति संयम और तपसे अपनी आत्मा को भावित करते हुए स्वस्थानासीन हो गये । "सेनं भंते! देवं भंते' ऐसा जो दो बार अग्निभूति गणधरने प्रभु से कहा सो इस कथन से उन्होंने प्रभुमें अपना श्रद्धातिशय और भक्त्यातिशय प्रकट किया हैं यह बात शास्त्रकारने प्रतिपादित की है ।। सू० १२ ॥ ११२ અગ્નિભૂતિને સમજાવ્યું કે ” શક્રેન્દ્રના અન્ય સામાનિક દેવા તથા ત્રાયઅિ’શક આદિની સમૃદ્ધિ, વિકુવા શકિત આફ્રિ તિષ્યક દેવના જેવાં જ છે. આ પ્રમાણે ભગવાનના વચને सांभणीने जीभ गौतम वायुभूति शुगारे ४यु “ सेवं भंते सेवं भते " હે ભદન્ત ! આપની વાત તદ્દન સત્ય છે. તેમાં શુકાને માટે અવકાશ જ નથી. वत "सेनं भंते" अहीने अग्निभूति भायुगारे लगवान महावीरनां वयनामां अतिशय श्रद्धा तथा लठितलाव ताव्यां छे. "त्ति दोच्चे गोयमे जाव विहरइ " આમ કહીને, વંધ્રુણા નમસ્કાર કરીને, સંયમ અને તપથી આત્માને ભાવિત કરતા અગ્નિભૂતિ અણુગાર પાત્તાને સ્થાને જઇને બેસી ગયા. ॥ સૂ. ૧૨ ।
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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