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ममेयचन्द्रिका टोकाश३. उ १ प्रायखिंशकदेव ऋद्धिविकुर्वर्णाशक्ति निरूपणम् ३९ व्विसति वा, जड़ण भते । चमरस्स असुरिंदस्स, असुररण्णो लोग पीला देवा एवमहि ढिया, जाव एवइय चण पभू विकुधित्तए, चमरस्स ण असुरिंदस्स, असुररण्णो अग्गमहिसीओ देवीओ के महिढियाओ, जाव केवइय च ण प विकृवित्तए, गोयमा । चमरस्सा असुरिंदस्स, असुररण्णो अग्ग महिसीओ महिडढियाउ, जाव- महाणुभागाओ, ताओ ण तत्थ साण साण भवणाण साण साण सामाणियसाहस्सीण, साणं साण महत्तरियाण ताण साण परिसाण, जाव एव महिड्ढियाओ, अपण जहा लोगपालाण अपरिसेस । सेव भते ! सेव भते । ति ॥ सू ४ ॥
छाया - यदि भगवन ! चमरस्य असुरेन्द्रस्य, अमुरराजस्य सामानिका देवा एव महर्द्धिका यावत् एवात्रश्च मर्विकुर्वितुम्, चमरस्य खलु मदन्त ! असुरेन्द्रस्य, अनुरराजस्य प्रायत्रिका देवा महर्द्धिका ! प्रायशिका
अय सूत्रकार घमरेन्द्र के जो प्रायत्रिंशक देव हैं उनकी ऋद्धि आदि के और विकर्षणा शक्ति के विषयका कथन करते हैं'जइ ण भते चमरस्स' इत्यादि ।
सूत्रार्थ - ( जड़ ण भंते 1) हे भदन्त ! यदि (मरस्स असुरिदम्स असुररण्णो) असुरेन्द्र असुरराज चमरके (सामाणिपदवा ए महिड्डिया जाव एवश्य घण पभू विकुव्वित्तए) सामानिक देव यदि इस प्रकार की महामाद्धिवाले हैं यावत् इतनी विक्रिया करने के लिये समर्थ है तो ( घमरस्स ण भते ! असुरिंदस्स असुररण्णो
હવે સૂત્રકાર ચમરેન્દ્રના ત્રાયપ્રિય રહેાની દ્ધિ અને વિકા શક્તિનું वर्षान रे " जण मते ! चमरस्स 17 ઇત્યાદિ
सूत्रार्थ -- ( जण मसे 1) अहन्त ले (घमरस्स असुरिंदस्स भनुररण्णो) असुरेन्द्र असुररान अभरना [ सामाजिय देवा एष महिड्डिया जाव एषवण पम् विकुचिर ) सामानि देवा मा आहारनी महाऋद्धि माहिथी युक्त छे भने मटकी अभी वैश्यिशक्ति धरावे छे तो (चमरस्स ण भंते । असुरिंदस्स असुर