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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ ७ सू ३ यमनामकळोकपालस्वरूपनिरूपणम् रोगा इति वा, शीर्षवेदना इति वा, अक्षिवेदना इति वा, वर्णवेदना इति नखवेदना इति वा, दन्तवेदना इति वा इन्द्रग्रहा इति वा, स्कन्दग्रहा इति वा, कुमारग्रहा इति वा, यक्षग्रहा इति वा, भूतग्रहा इति वा, एकाठिका इति वा द्वयहिका उति वा, त्र्यहिषा इति वा, चतुरहिका इति वा, उद्वेजका इति वा, कासा इति वा, श्वासा इति वा ज्वरा इति वा, दाहा इति वा, कक्षाकोथा इति वा, अजीर्णका पाण्डुरोगा, अर्शासि इति वा, भगन्दरा इति वा, हृदयशूलानि इति वा, मस्तकशूलानि इति वा, योनिशूलानि इति वा पार्श्वशूलानि इति वा कुक्षिशूलानि इति वा ग्राममारी इति वा, आरमारी इति वा नगर
सीसवेयाइ घा, अच्छिवेयणाइ वा कण्णवेयणाइ या, नहवेयणाइ वा, दतवेपणा चा) इसी तरह महापुरुषों का मरण, महारुधिरका निकलना दुर्भूत, कुलरोग, ग्रामरोग, महलरोग, नगररोग, शिरदद आवों की पीडा कान की पीडा, नग्वोंषी वेदना, दातोंका दुखना (हदग्गहाइ वा, खदग्गहाद चा, कुमारग्गहाइ वा, जक्खग्गहाइ वा, भूयग्गहाइ वा, पगारिया वा बेयाहियाह वा तेयाहियाइ वा घाउत्थहिया वा,
व्यगार वा, कासाइ वा, सासाइ मा, जराह घा, दाहाह वा, फच्छकोहाइ घा, अजीरया, पडुरोगा, हरिसाह वा भगदराइ वा ) इन्द्रमह, स्कन्दग्रह, कुमारग्रह यक्षग्रह, भूतग्रह, एकान्तरज्वर, तिजधारी, तीनदिनको छोडकर आनेवाला ज्यर, चारदिन के बाद आनेवालाज्वर, उद्वेग, स्वांसी, श्वास, ज्वर, दाह, शरीर के अमुकभागों का सडना, अजीर्ण, पांडुरोग, वयासीर, भगदर (हिययस्लाइ वा ) हृदयशूल (मस्थंनगररोगाइ वा, सीसषेयणाहवा, अच्छिवेयणाइ वा, कण्णवेयणाड वा, नहवेयणाइवा दवणाइमा ) महापुरुषान भर, भहातपात, हुर्लिक्ष, डुमरोग, ग्रामरोग, भांडण रोग, नगर रोग, शिर हुई, नेत्रह, पीडा, नमनी भीरा हातनु हुई, (इदगाह वा, खदग्गडाह वा, कुमारग्गहाड वा, जक्खग्गहा बा, भूयम्गाइ चा, एग्गहियाइ वा, वेयाहियाइ वा, सेयाडियार या, चाउत्यहियार मा, उच्चेयगाइ षा, कासावा, सासार वा, जराइ वा, दाहाइ वा, कच्छकोडाइ वा, अजीरया, पडरोगा, हरिसाह था, भगंदराइ वा ) इन्द्र भर, 8 अ, भारभडू, યક્ષમ, ભૂતમ, એકાતરિયા તાવ, ત્રણ દિનને આતરે આવતે જ્વર ચાર દિનને आंतरे भावतो पर, बग, यांसी, श्वास, वर, हाडे, शरीरना मोनोसो, मर्स्', भाडुराण इरस, भग ४२ (हिययस्लाइ मा) हृयशुद्ध हृदय रोग (मत्यय सूलाइ घा, जाणिलाइ वा, पास सुलाइ षा, कुच्छिस्लाइ घा, गाममारीड़ वा,