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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३उ ७ १ शक्रस्य सोमादिलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ७८३ ग्रहयुद्धानि इति वा; ग्रहशृङ्गाटकानि इति चा, ग्रहापसव्यानि इति वा, अभ्राणि इति वा, अम्रक्षा इति वा, सन्ध्या इति वा, गन्धर्वनगराणि इति चा, उस्कापाता इति वा, दिग्दाहा इति या, गर्जितानि इति वा, विद्युद् इति वा, पाशुवृष्टिः इति वा यूपा उति वा; यक्षोहीप्तानि इति वा, धूमिका इति वा, महिका इति वा, रजउद्घात इति वा, चन्द्रोपरागा उति वा, सूर्योपरागा इति वा, चन्द्र परिवेपा इति वा, सूर्य परिवेपा इति वा, मतिचन्द्रा इति पा, प्रतिसूर्या इति वा, इन्द्रधनु इति वा, उदफमत्स्य-कपिइसिताऽमोघमाचीनवाता इति वा पती चीनवाता इति वा । यावत्-सवतेक्चाता इति वा, ग्रामदाठा इति वा, यावतसभिवेशदाहा इति वा, माणक्षया , जनक्षया , घनक्षया , कुलपया , व्यसन गर्जित, ग्रहयुद्ध (गहसिंघारगाइ वा, गहायसव्वाइ या, अन्माड या, अमरक्खाइ घा, सझाइ था, गधन्वनगराइ चा) ग्रहशृङ्गाटक, ग्रहा. पसन्य, अभ्र, अभ्रवृक्ष, सध्या, गधर्मनगर, (उझापायाइ चा, दिसिदाहाड वा, गजियार वा, विज्जयाइ वा) उक्कापात, दिग्दाह, गजारय, विद्युत् (पसुट्ठीइ वा) धूलिवृष्टि (जूवेइ घा) यूप (जमवालिचए वा) यक्षोहीत, (धूमियाइ वा मछियाइ वा, रयुग्धाएति वा, चदोवरा गाइ वा, सरोवरागाइ था, घदपरिवेसाइ धा) घूमिका, महिका, रज उद्धात, चद्रोपराग, सूर्योपराग, चद्रपरियेप, (सूरपरिवेसाइ था) सूर्य पग्वेिष (पडिचदाइ था, परिसराइ वा, इदधणूइ वा, उदगमच्छ-कपि हसिय, अमोहपाईणघायाइ वा,) प्रतिचन्द्र, प्रतिमुये, इन्द्रधनुष, उदक मत्स्य, फपिहसित, अमोघ, पूर्वदिशाके पवन, (पईणयायाइ वा,) पश्चिमदिशाके पचन (सवयवायाइ था, गामदाबाड वा, आव सनि
यु, (गहसिंघाडगाइ पा, गहायसन्बाइ वा, अन्माइ चा, अन्मरुक्खाइ वा, सझाइ वा, गधवनगराइ वा) Bi, RB५मध्य ४५, वृक्ष, अभ्या,
२, (उकापायाइ वा, दिसिदाडाइ था, गज्जियाइ था, विज्जुयाइ वा) पात, GिT, PIGA Pq, विधुत ( पसबुट्टीई वा) पूजन वृष्टि, (जयेइ वा) ५५, (मक्खालिसए वा) यादीस, (मियाइवा, महियाउ मा, रयुग्घाएत्ति था, चदोवरागाइ वा, सरोवरागाइ वा, चदपरिवेसाइ वा) धूमिन, महिमा २४दात, सोपा, ५२०, यन्द्र पश्विष (सर्यपरिवेसा: या) पश्विष (पडिच दाइ वा, परिसराइ षा, उदघाइ था, उदगमच्छ, फपिठसिय, अमोहपाईणयाया पा) प्रतियन्द्र, अतिसूर्य, धनुष, मत्स्य, पिसित, माघ पूर्व निशाना पवन, (पईणवायाइ वा) पबिभ लिन पपन (सगट्टयपाया। वा, गाम