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क्रि 69
स्थाना
यामध्ये वि भवतीति । आकारवायम् ( 2 ) इति । एकतः खी- एकस्यां दिशि अङ्कुशाकारा, यया जीवः पुद्गलो वा बस वाहया वासाचदेतां पविष्टः, तथैन गला पुनस्तद्वामा वदनुत्पद्यते सा एकतःखा । स्थापनाः चेयम्-(~.) इति १ | द्विद्यातःखा उभयस्यां दिशि अङ्कुशा कारा, प्रसनाडया
पानी पनि गला अस्था एवं दक्षिणपार्श्वादौ यया उत्पन साहिधात खा, नाडीवहिर्भूतयोर्वामदक्षिणपार्श्वलक्षणयोर्द्वयोराकाशश्रेण्योः है, तिरा ही वाध्य दिशा में जाता है, बाद में नीचे वाहन्यदिशा में है, यह गति तीन बाली होती है, और यह बस नाड़ी के भीतर अथवा बाहर होती है । इसका आकार (2) इस प्रकार से है । जो गति एक दिशा में अदा के आधार जैसी होती है वह एकतः खा है, इस गति से जीव अथवा पुल श्रम नाडी के वामपाएँ आदि से उस बसनाड़ी में मंत्रिष्ट होता है और उसी
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:-खा
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जो गति
उसके बाम पार्श्व आदि में उत्पन्न होती है ऐसी यह गति है, इसका स्थापना ( - ) हल प्रकार से है विधतः खा दोनों दिशाओं में अंकुश के आकार जैसी होती है वह द्विघात हैं । स नाड़ी के पार्श्व भाग से नाड़ी में भविष्य उसी से जाकर इसी के दक्षिण आदि में जिससे उत्पन्न होता है ऐसी वह गति द्वितः खा है। क्योंकि इस प्रकार की प्रदेशपंक्ति से बाड़ी के बाहर की बदक्षिण भाग व अकिरा अणियाँ) पृष्ट होती है।
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जाकर
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छ। 'वार्य 'दिशा' लय, (यार, यह नीचे वय हिशालय छे मा गति ऋशु समयवाणी होय छे, मते यनाडीनी मांडके, डार वाय (छ મણુિના આકાર (Z) કૌસમાં ખતાવ્યા પ્રમાણે હોય છે, જે ગતિ એક દિશામાં अशनालेवारी ते मेतमा ४ छे आ गतिवडे છત્ર અથવા પુઠ્ય : ત્રસનાડીતા વામપાર્શ્વ આદિમાં થઇને તે વ્રુસ્રનાડીમાં પ્રવેશ કરે છે અને તેમાંથી જ જઇને તેના વામપાર્શ્વ આદિમાં, ઉત્પન્ન થાય છે. એવી ते,गतितुं नाभ ‘शेऽतः छे, तेनेो भार (.) डी सभां नवव्या प्रभाबे હાય છે.
દ્વિષાત મા જે ગતિ બન્ને હિંશામાં કુશના આકાર જેવી હોય છે, તેને દ્વિઘાત,ખા” કહે છે જીવ અથવા પુદ્દલ સનાડીના વામપાર્શ્વમાંથી દખલ થઇને અને તેમાથી જ જઇને તેના દક્ષિગ્રુપર્યં આદિમાં જે ગંતિ વડે ઉત્પન્ન થઈ જાય છે તે ગતિનું નામ દ્વિધાન મા છે, કારણ કે આ પ્રકારની પ્રદેશ पंडित वडे 'माडींनी भंडारनी वाम' दक्षिण ( अमामा) भाग ३ श्रेशियो पृष्ट थर्य छे. तेनी - आहार ( क ) डी सभी णताच्या प्रेमाचे डायः छे.
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