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________________ 16 सुंधा टीका स्था० ७ ९ सप्तविधभयस्थाननिरूपणम् सू० तथा मूलम् - सत्त भट्टाणा पण्णत्ता, तं जहा - इहलोगभए १, पर लोगभए २, आदाण भए ३, अकमहाभए ४, वेयणभय ५, मरणभए - ६, असिलोगभए ७ ॥ सू० ९ ॥ 2 छाया - सप्त भयस्थानांनि मंज्ञष्ठानि, तद्यथा - इहलोकभयं १, परलोकभयम् २, आदानभयम् ३, अकस्माद्भयम् ४, वेदनभयं ५ मरणभयम् ६) भश्लोकभयम् ७ ॥ मू० ९॥ टीका- ' सत्त भट्टाणा ' इत्यादि 1 भयस्थानानि - भयं = मोहनी पत्रकृतिसमुद्भूत आत्मपरिणामः, तस्य स्था नानि श्रयाः सप्त मज्ञप्तानि तद्यथा - इहलोकभयम् - इहलोकः = सजातीयो लोकः) तो यद्भयं तत्, -सजातीयस्य सजातीयाद् भयमित्यर्थः । यथा - मनुष्याणां मनुष्येभ्यः, तिरवां तिर्यग्भ्यः इत्यादि । १ । परलोकभयम् - विजातीयस्य विजा t ५७ 66 सप्तभयाणा पण्णत्ता " इत्यादि || सूत्र ९ ॥ टीकार्थ-भयस्थान७ कहे गये हैं, जैसे- इहलोक भयस्थान १, परलोक भयस्थान २ आदान भयस्थान ३ अकस्माइस्थान ४, आजीव भयस्थान ५, मरणभग्रस्थान ६ और अंश्लोक भस्थान ७ भय मोहनीय प्र तिके उदयसे उत्पन्न हुआ जो आत्मपरिणाम है, वह भय है, उस भयके सात आश्रय (भेद) कहे गये हैं। उनमें जो सजातीयको सजातीयसे भय होता है, वह इहलोक भय है, इहलोकसे यहां सजातीय लोक लिया गया है। जैसे - मनुष्यों को मनुष्यों ले भघ होता है, तिर्थ agat तिर्यञ्चसे भय होता है इत्यादि १ । 66 1 सत्त भयाणा पण्णत्ता " त्याहि- टीडार्थ -सात अारनां लयस्थाने उद्यां छे - ( 1 ) होउ लयस्थान, (२) १२. बोर्ड लयस्थान, ( 3 ) " आाान लयस्थान, (४) अस्मादयस्थान, (4) मालव अयस्थान, (६) भरणु लयस्थान अने (७) अंश्सा लयस्थान. ભ્રમેહનીય પ્રકૃતિના ઉદયથી ઉત્પન્ન થયેલુ જે આત્મપરિણામ છે तेनुं नाम भय छे. (१) धडियो लय - सन्नतीयने सन्ततीयनो ने लय लागे छे 'तेने 'ड बोलय छेउ' यह द्वारा ही 'समंतीय सोई' गृहीत शयेस छेभडे, मनुष्याने / मनुष्योनो लय हाय' ने तिर्ययाने તિય ચાના ભય હાય છે. ( f A
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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