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नीम -
या कम्पनेने या सा गतिः- क्षेत्रविशेष रुपा रामपतिगतिः- नाम कर्मा चरम निष्पा स् पञ्चविधाः पाप्ताः । पञ्चविधनियम इत्यादि । निये- नाके गतिः- गगनं- निरयगतिः विनयगतिः २ गम्यतेऽनयेति गतिःपिना गतिनियत रिति । निर्यमतिः-निर्यक्षु गतिः १, निर्यरखनेवाली जो बाते हैं, उनका कथन अध्ययनकी समाप्ति पनि हो ये कहते हैं
यस
ताओं उत्यादि २ ॥
श्री विना मगति, अथवा जो जीव द्वारा प्राप्त की जानी क्षेत्रविशेषरूप होती है, अथवा जिम मेरी सतिगमन होता है, वह गति है, ऐसी तिनाउ प्रकृति होती है. अथवा जीवकी जा अवस्था नामकर्मी उत्तर प्रकृतिरूप यति द्वारा की जाती है, वह गति है। जीवस्थाएँ होती हैं ये गनियां पांच कही गई हैं सेनि निर्व२नुपनि देवगति और सिद्ध
गमता है, निरनिनिग्य क्षेत्र विशेष में गति है, वह निरयगति हैं,
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