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________________ स्थानांगसूत्रे लकमधुरफलेऽल्यं माधुर्य तथाऽऽचार्येऽपि अल्प एवोपशमादिगुग इति तत्समान आचार्यों व्यवहोयते, एवं बहुवहुतर बहुतमोपशमादिगुणसम्पन्नेवाचार्ययुद्वी कामधुरफलादि समानत्वं बोध्यम् ।। ।। मृ० १८ ।। मूलम्-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-करेइ णाममंगे वेयावच्चं णो पडिच्छइ १, पडिच्छइ णामभेगे वेयावच्चं णो करेइ २, एगे पडिच्छइवि करेइवि ३, एगे नो पडिच्छइ नो करेइ ।। चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-अहकरे णाममंगे जो माणकरे १, माणकरे, णाममेगे णो अटकरे २, अट्टकरऽवि माणकरेऽवि ३, एगे णो अट्ठकरे णो माणकरे ४, चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--गणट्ठकरे णासमेगे जो माणकरे० ४, चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- गणसंगहकरे णाममेगे जो माणकरे० ४, चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--गणसोहाकरे णाममेगे जो माणकरे० ४, चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--गणसोहिकरे णामोंगे णो माणकरे० ४॥ चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--रूवं णाममेगे जहइ फलसे उपमित किया गया है। इसी प्रकारसे जो आचार्यजन बहुमात्रा में, बहुर मात्रा, बहुतम मात्रामें उपशमादि गुणोंसे युक्त होते हैं उनमें क्रमश मृद्रीका मधुर फलादि समानता जाननी चाहिये ।।स्नु०१८॥ બહુતમ માત્રામાં ઉપશમાદિ ગુણેથી સંપન્ન હોય છે, તેમને અનુક્રમે મૃદ્ધીકા (द्राक्ष) मधु२, क्षीरमधुर भने म' (AU३२) मधुर ३१ समान समा . सू. १८४
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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