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________________ सुधा टीका स्था० ४ उ०२ सु० ४२ वृषभहंष्टान्तेन पुरुषजातनिरूपणम् ५९७ चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा - कुलसंपपणे णाममेगे णो रुवसंपणे ४, एवामेव चन्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - कुल० ४, ६, चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा - बलसंपणे णामसेगे णो रुवसंपण्णे ४, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - चलसंपपणे णाम मेगे ४, ७ । सू० ४२ । छाया - चलार ऋषभाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - जातिसम्पन्नः १, कुलसम्पन्नः २, बलसम्पन्नः २, रूपसम्पन्नः ४ | एवमेत्र चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - जातिसम्पन्नो यावद् रूपसम्पन्नः ४, १| चत्वार ऋषभाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - जातिसम्पन्नो नामैको नो कुलसम्पन्नः १, कुलसम्पन्नो नामैको नो जातिसम्पन्न २, एको जातिसम्पन्नोऽपि कुलसम्पन्नोऽपि ३, एको नो जातिसम्पन्नो नो कुलसम्पन्नः ४, अब सूत्रकार दान्तिक भूत पुरुष जात को ही वृषभ दृष्टान्त से निरूपित करते हैं - " चत्तारि उसभा पण्णत्ता " - इत्यादि ॥४२॥ सुत्रार्थ - वृषभचार प्रकार के कहे गये हैं-जाति सम्पन्न -१ कुलसम्पन्न -२ बल सम्पन्न -३ और- रूप सम्पन्न-४ इसी प्रकार से पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं-जाति सम्पन्न, यावत् रूप सम्पन्न - ४, १| पुनःबैल चार प्रकार के कहे गये हैं, जाति सम्पन्न नो कुलसम्पन्न, १ कुल सम्पन्न नो जातिसम्पन्न, २ जाति सम्पन्न भी कुलसम्पन्न भी, ३ और હવે સૂત્રકાર વૃષભના દૃષ્ટાન્ત દ્વારા દાન્તિક પુરુષજાતનું નિરૂપણ કરે છે. " चत्तारि उसभा पण्णत्ता " इत्यादि सूत्रार्थ - वृषभ ( मजह ) यार अारना ह्या छे -- (१) अति संपन्न, (२) स संपन्न, (3) मस सौंपन्न, (४) ३५ संपन्न. मे ४ प्रमाणे पुरुषना पशु लति સપન્ન આદિ ચાર પ્રકાર કહ્યા છે. વૃષભના નીચે પ્રમાણે ચાર પ્રકાર પણ કહ્યા છે—(૧) જાતિ સ`પન્ન, ना मुझे सौंपन्न, (२) मुझे सौंपन्न नो कति सपन्न, (3) अति संपन्न -डुस
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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