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________________ सुघाटीका स्था० ३ उ०२ सू० ३७ पुरुष प्रकारनिरूपणम् ३१ F विषयं चेति सूत्रद्वयमपि बोध्यम् ३-४ कालत्रयविशिष्टं चतुर्थसूत्रम् इत्यादि क्रमशो बोध्यम् । ' तओ' इत्यादि प्रकारान्तरेणाह अता ' इति, एवम् ' अगंता ' अगत्वा, इत्यादीनि त्रीणि प्रतिषेधसूत्राणि ७, ' आगंता ' आगत्य, इत्यादीनि त्रीण्यागमनमूत्राणि च सुमनो दुर्मनस्तन्निषेधरूपाणि भूत - वर्तमान भविष्यत्कालविषयाणि वोध्यानि । ' एवं ' इति, एवमेतेनाभिलापेनाऽन्यान्यपि सूत्राणि विज्ञेयानीति भावः । अथोक्तानुक्तसूत्रसंग्रहणार्थ ४ सूत्र होते हैं । इसी प्रकार से " यास्यामि " पद जोड़कर सुमना आदिकों का कथन कर लेना चाहिये । - 66 " तओ पुरिसजाया पण्णत्ता " इस प्रकार से भी पुरुष तीन होते हैं- जैसे - " अगंता " कोई एक पुरुष वहां विहार आदि क्षेत्र में नहीं जा कर सुमना हुआ है, कोई नहीं जा कर दुर्मना हुआ है और कोई जाकर भी मध्यस्थ रहा है ये इसी प्रकार से न यामि न यास्यामि " तीन सूत्र प्रतिषेध सूत्र हैं । तथा " आगंता " इत्यादि तीन सूत्र आगमन सूत्र हैं, ये भी सुमन, दुर्मन, और इन दोनों के निषेधरूप हैं, तथा भूत, वर्तमान और भविष्यत्काल के सम्बन्ध रखनेवाले हैं, अर्थात् कोई जीव मगध विदेह भूमि में भूतकाल में पीछे आ कर के सुमना हुआ है, कोई दुर्मना हुआ है और कोई मध्यस्थ रहा है । इसी प्रकार कोई वहां से आकर के सुमना है, कोई दुर्मना होता है और कोई मध्यस्थ रहता है, इसी प्रकार कोई वहांसे पीछे आऊँगा " इस विचार से सुमना होगा, कोई दुर्मना होगा और कोई मध्यस्थ रहेगा, समभाववाणो रहे छे. मे ४ प्रमाणे " यास्यामि " ક્રિયાપદ વાપરીને सुभना ( हर्षित ) माहि अनुं स्थन थवं लेखे. ८८ CC " तओ पुरिसजाया पण्णत्ता " नीचे प्रभा अभरना पुरुषा पशु ४ह्या छे-भ} “ अगंता " । पुरुष त्यां विहार आदि क्षेत्रमां नहीं भाववा છતાં પણુ હર્ષિત થાય છે, કેાઈ નહીં જવાથી દુઃખીત થાય છે અને કોઈ ત્યાં નહીં જવા છતાં પણ શાકથી રહિત ( સમભાવયુક્ત ) જ રહ્યા છે. આ न यामि, न यास्यामि " त्रयु सूत्र प्रतिषेधसूत्र छे तथा आगता " ઈત્યાદિ ત્રણ સૂત્ર આગમન સૂત્ર છે. તે પણ સુમન, દુમન અને તે બન્નેના નિષેધરૂપ છે, તથા ભૂત, ભવિષ્ય અને વર્તમાનની સાથે સબધ રાખનારાં છે. એટલે કે ફાઈ જીવ મગધ, વિદેહ આદિ ભૂમિમાંથી ભૂતકાળમાં પા કરીને હર્ષિત થયા છે, કાઈક ત્યાંથી પાછે ફરીને દુઃખી થયેા છે, અને કાઈ ત્યાંથી પા કરીને મધ્યસ્થ ભાવમાં રહ્યો છે એ જ પ્રમાણે “ ત્યાંથી પાછે ફરીશ એવા ખ્યાલથી કાઈ હર્ષિત થશે, કાઈ દુઃખી થશે અને કોઈ મધ્યસ્થ ભાવમાં
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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