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________________ ३३२ स्थानास्त्रे अभिभवइ । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए छहिं जीवनिकाएहिं जाव अभिभवइ ३॥१॥ तओ ठाणा विवसियस्स हियाए जाव आणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा--से णं मुंडे अवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए णिग्गंथे पावयणे णिरसंक्किए णिक्कंखिए जाव नो कलुससमावन्ने णिरगंथं पावयणं सद्दहइ पत्तियइ रोएइ से परिस्सहे अभिमुंजिय २ अभिसवइ, नो तं परिस्सहा अभिजु. जिय २ अभिभवंति १ । ले णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पंचहिं महत्वएहिं णिस्संकिए णिकंखिए जाव परिस्सहे अभिमुंजिय २ अभिभवड, नो तं परिस्सहा अभिमुंजिय २ अभिभवंति २ से णं मुंडे भक्त्तिा अगाराओ अणगारियं पहइए छहिं जीवनिकाएहिं णिस्संकिए जाव परिस्सहे अभिमुंजिय २ अभिसवइ, नो तं परिस्लहा अभिजुजिय २ अभिभवंति ३ ॥ सू० ९७ ॥ __छाया-त्रीणि स्थानानि अव्यवसितस्य अहिताय असुखाय अक्षमाय अनिश्रेयसाय अनानुगामिकतायै भवन्ति, तद्यथा स खल्लु मुण्डो भूत्वा अगारात् अन__इस प्रकार से मरण के सम्बन्ध में कथन किया अब सूत्रकार इस नव्वे ९० सूत्र में कथित तीन स्थान किनके लिये अहित कर आदि विशेषणोंवाले होते हैं और किनकेलिये हितकर आदि विशेषणों वाले होते हैं ऐसा कथन करते हैं “तओ ठाणा अव्यवसि यस्स अहियाए असुहाए” इत्यादि। सूत्रार्थ-तीन' स्थान अव्यवसित - उद्यमहीन जीव को अहित મરણનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું. આ નેવુંમાં સૂત્રમાં પ્રતિપાદિત ત્રણ સ્થાને કોને માટે અહિતકર હોય છે અને કેને માટે હિતકર હોય છે ते ४थन 3रे छ-" तओ ठाणा अव्यवसियस अहियाए असुहाए" त्याह સૂત્રાર્થ–નીચે જેનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે એવાં ત્રણ સ્થાન (કારણે) मध्यवसित (Gधभडीन) वनु भडित ४२नारा, असुभ ४२नारा, असम
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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