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सूत्रकृताङ्गसूत्रे
कारावेत्तएं करतं वा समणुजाणित्तए, तेऽवि णं बाला सदवेसिं पाणीण जावससि सत्ताणं दियां वा राओ वा सुत्ता वा जागरमाणावा अमित्तभूया मिच्छासंदिया निच्चं पसढवि वायचित्तदंडां' तं जहा - पाणाइवाए जाव मिच्छादंसण सल्ले: इच्चैव जांव णो चैव मणो णों चेत्र वई पांणाणं जाब सत्तायां दुक्खणयाए सोमणयाए जूरणयाए तिप्पणयाए पिट्टणयाए परितपणयाए ते दुक्खणसोयण 'जाव परितप्पणच हबंधन परिकिलेसाओ अप्पडिविरया भवंति । इइ खलु से असन्नि णो ऽवि सत्ता अहोनिसिं पाणाइवाए उवक्खाइज्जति जाव- अहो - निसिं परिग्गहे उवक्खाइजेति जात्र मिच्छादंसण सल्ले उ क्वाइज्जति ' एवं भूयवाई' सव्वजोणिया वि खलु सत्ता, सन्निणो हुच्चा असन्निणो होंति असन्निणो हुच्चा सन्निणो होति, होच्चा सन्नी अदुवा असन्नी, तत्थ से अविविश्चित्ता अविधूणित्ता असंमूच्छित्ता अणणुतावित्ता असन्नि कायाओवा सन्निकाए संहति सन्निकायाओ वा असन्निकार्य संकमंति सन्निकायाओ वा सन्निकायं संकमंति, असन्निकायाओ वा असन्निकायं संकमंति, जे एए सन्नी वा असन्नी वा सव्वै ते मिच्छायारा निच्चं पसढ़विडवायचित्तदंडा, तं जहाँ - पाणा
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इवाए जाव मिच्छादंसणसल्ले, एवं खलु भगव्या अक्खाएं असंजए अविरए अप्पाड हय अपञ्चकखाय पावकम्मे सर्किरिए असंवुडे एगंत दंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते से बाले अवियारमणत्रयण कायवक्के सुविणमविण पासइ पात्रे य से कम्मे कज्जइ | सू० ४।६६ |
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