SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૧૪ सूत्रकृतसूत्रे चन्याः पशत्रो यदा ग्रामं प्रविशन्ति तेषां शुभाशुभफलपतिपादकं शास्त्रम्, मृगचक्रमिवमीयते, 'यस परिमंडल' बाघपरिमण्डलम् काकादिपरिवर्तन संपू चिताऽतिज्ञापकं शास्त्रम् पबुद्धि' पांसुवृष्टिम् धूलिवृष्टेः फलमतिदक शास्त्रम्, 'के सबुद्धि' केतुष्टि के पर्पणफलपतिपादकं शास्त्रम् 'संसवृद्धि' 'मांसवृष्टि-मसर्पणनि फल रविपादकं शाखम् 'बेताल' वेली याया विद्यायाः समिद्धौ सत्यां काष्ठापि अपने चेरना मते 'अहवे. तालि' तालीम् - चैताली विद्यायाः मपिक्षभूताम् 'ओ' अपस्यापिनीम्निद्राकारिणीम् ' तालुखाडगिलोदवादनम् 'मोवाणि' थापाकीम् - चाण्डलfaद्या मित्यर्थः, 'मो शायरी - शस्त्रसम्बन्धिनी विद्याम् 'मिलिं’ द्वारी 'कालिंग' कालिङ्गम् 'ग'रि' गोरीम् 'गंगा' गान्धारीम् ' ओस्ताज' दिखने का फल प्ररूपित करने वाला शास्त्र (४१) वायपरिमंडलकाक आदि पक्षियों की बोली का फल कहने वाला शास्त्र (४२) पशुवृष्टि - धुलिच का फल निरूपण करने वाला शास्त्र (४३) केश वृष्टि - केश वर्षा का फल कहने वाला शास्त्र (४४) मांसवृष्टि का फल कहने वाला शास्त्र (४५) कधिरवृष्टि का फल कहने वाला शास्त्र (४६) वैनाली - जिस विद्या से अचेतन काष्ट में भी चेतना आ जाती दीग्वती है (४७) अर्द्ध वैनाली - वैनाली विद्या की विरोधिनी विद्या (४८) अवस्वापिनी - जिससे जागता हुआ मनुष्य सो जाता है । (४९) तालोद्घाटनी - ताला खोल देने वाली विद्या (५०) श्वपाकी - चाण्डाल विद्या (५१) शाम्बरी -घर संबंधी विद्या (५२) द्राविडी विद्या (५३) कालिंगी विद्या (५४) गौरी विद्या (५५) गांधारी वाजी विद्या (उ८) हिग्वाड- हिशाहीर मताववा वाजु शास्त्र (४०) भृगय:ગ્રામ પ્રવેશના સમયે જનાવરાને જોવાના ફળને ખતાવવા વાળું શાસ્ત્ર (૪૧) વાયસ પરિમ’ડલ-કાગડા વિગેરે પક્ષિયાની મેલીના ફળને ખતાવવાવાળું શ સ્ર (४२) पांशुवृष्टि-धूण वर्षाना इण मनावना३ शास्त्र (४३) वृष्टि देशवर्षाना जनुं नि३५ ४२वावजु शास्त्र (४४) मांस वृष्टि - शास्त्र (४५) ३धिरવૃષ્ટિ શાસ્ત્ર (૪૬) વૈતાલી–જે વિદ્યાથી અચેતન-સૂકા લાકડામાં પણ ચેતન આવી જાય છે. (૪૭) જે અવૈતાલી વૈતાલીવિદ્યાની વિધીની વિદ્યા (૪૮) અવ સ્વાપિની—જે વિદ્યાના ખળથી જાગતા માણસ પથ્રુ ઉઘી જાય છે. (૪૯) तासोद्दघाटनी - तालु ઉઘાડીનાખવા વાળી વિદ્યા (૫૦) પાકી-ચાણ્ડાલ विद्या ( 47 ) शास्री - शजर संधी विद्या ( 42 ) द्राविडी विद्या ( 43 ) सिंगी विद्या (५४) गौरी विद्या (पथ) गांधारी विद्या (यह ) अवयतनी विद्या-नीचे
SR No.009306
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages791
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy