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________________ ६५८० ..... . सूत्रहताजस्त्र -:..अन्वयार्थ:-(जे यावि) ये चापि (तहप्पगारं भुजति) तथाप्रकारं मांस भुनते (ते),ते (अजाणमाणा) अजानानाः (पावं सेवंति) पापमेव सेवन्ते (कुसला) कुशलास्तु (एय मणं न करेंति) एतद् ईदृशं मनोऽपि न कुर्वन्ति (एसा वाया वि) एपा वागपि-मांसभक्षणं कर्तव्यमित्येव रूपा (बुइया) उक्ता (मिच्छा) मिथ्या-मिथ्यैवेति।३१॥ टीका-'जे यावि' ये चापि 'तहप्पगारं" तथामकार-पूर्वगाथोक्तं मांसम् । भुजंति' भुञ्जते-भक्षणं कुर्वन्तीत्यर्थः 'ते अजाणमाणा पावं सेवंति' तेऽजानाना -अज्ञानिनः पापमेव सेवन्ते, पापाचरणमेव हठेन कुर्वन्ति । 'कुसला एवं मणं न करेंति' कुशलाः-विवेकिनो नैतन्मनः कुर्वन्ति । ये तु-कुशलास्ते मांसभक्षणहै 'कुसला-कुशलाः' जो पुरुष कुशल हैं 'एयं मणं न करेंसि-एतन्मनन कुन्ति' वे तो मांसभक्षण करने की इच्छा भी करते नहीं। 'एसा वायावि-एषा वागपि' मांस भक्षण करना चाहिए अथवा मांस भक्षण में दोष नहीं हैं, इस प्रकार 'वुया-उक्ता' कहा हुआ-बचन भी 'मिच्छा-मिथ्या' मिथ्या है ॥३९॥ .. अन्वयार्थ जो लोग पूर्वोक्त मांस का भक्षण करते हैं, वे अज्ञानी पाप का ही सेवन करते हैं। जो पुरुष कुशल हैं, वे तो मांस भक्षण करने की इच्छा तक नहीं करते। मांस भक्षण करना चाहिए या मांस भक्षण करने में दोष नहीं है, इस प्रकार का वचन भी मिथ्या है ॥३९॥ - . टीकार्थ-पूर्वगाथा में कथित मांस का जो भक्षण करते हैं, वे अज्ञानी जन पाप का ही सेवन करते हैं-हठपूर्व पाप का आचरण करते हैं । विवेकवान् पुरुष हैं वे तो मांसभक्षण की इच्छा भी नहीं २५३५ ४२ छ, 'पय मण न करें ति-एतत् मनः न कुर्वन्ति तमाता मांस भक्षय ४२वानी ४२छ५४ ४२॥ नथी, 'एसा वाया वि-एषा वागपि' भांस समय ४२, नये से प्रभारनी 'बुइया-उक्ता' ४२स पायी पशु 'मिच्छा-मिथ्या' मिथ्या छे ॥10 36॥ અન્વયાર્થ—અજ્ઞાની એવા જે લોકે આ પહેલાં કહેવામાં આવેલ માંસનું ભક્ષણ કરે છે. તેઓ પાપનું જ સેવન કરે છે. જે પુરૂષ કુશળ છે, તેઓ તે માંસ ભક્ષણ કરવાની ઈચ્છા પણ કરતાં નથી. માંસ ભક્ષણ કરવું જોઈએ અથવા માંસ ભક્ષણ કરવામાં દોષ નથી. આવી રીતે કહેવામાં આવેલ વચન પણ માપકારક જ છે. ૩લા ' . . दय-पक्षी थामा ४वामा मा मसिनुरेसा पक्ष रे છે, તેઓ અજ્ઞાન અર્થાત્ પાપનું જ સેવન કરે છે, વિવેકી પુરૂષે તે માંસ
SR No.009306
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages791
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size45 MB
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