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________________ . सूत्रकृतासूत्र ___अन्वयार्थः--'मईय' मतिमान-केदलज्ञ नीत्यर्थ: 'अणुवीय' अनुविचिन्त्य केवलज्ञानेन ज्ञात्वा (अंजू) प्रार्जु-सरलम् (साहिं) समाधि-मोक्षमापत्रम् (धम्म) धर्म-श्रुनुचारित्राख्यम् (आघ) आग्ख्यात वान-कोथिनवान (तमिण) तमिम धर्मम् (सुणेह) मत्तः शणुत शिष्याः !, (अपडिन्न) अपतिज्ञः-इहलोकपलोकाशंसारहितः (ममाहिपत्ते) ज्ञानादिसमाधिमाप्तः (अणियाणभूएसु) भूतेषु अनिदानः, निदानम्-आरम्भरूपं तद्रहितः 'भिवखू' भिक्षुः (परिचएज्जा) परिव्रजेत्संयमे पराक्रमेत् इति ॥१॥ ___टीका--'मईमं मतिमान् मननं मतिः-समस्तपदार्थविषयकं ज्ञानम् तादृश श्रुत चारित्र रूप धर्म का 'आघं-आख्यातवान्' कथन किया है तमिणं तमिमं उस धर्म को 'सुणेह-शृणुत' हे शिघ्यो तुम लोग सुनो 'अपडिन्न-अप्रतिज्ञा' अपने तपका फल न चाहता हुआ 'समाहिपत्तेसमाधिप्राप्त:' समाधिको प्राप्त 'अणियाण भूएस्तु-अनिदानो भूतेषु' प्राणियोंका आरंभ न करता हुआ'भिक्खू-भिक्षुः साधु 'परिव्य एज्जापरिव्रजेत्' शुद्ध संयमका पालनकरे ॥१॥ ____ अन्वयार्थ-मतिमान अर्थात् केवलज्ञानी ने, चिंतन करके अर्थात् केवलज्ञान से जान कर सरल लमाधि धर्म का कथन किया है। इस धर्म को श्रवण करो। ऐहिक एवं पारलौकिक आकांक्षा से रहित, समाधि को प्राप्त भूतों (जीवों) के विषय में आरंभ न करने वाला भिक्षु सं-म में पराक्रम करे ॥१॥ . टीकार्थ-मनन करना मति है। यहाँ मति का अर्थ है-समस्त 'माघ-आख्यातवान्' थन ४यु छे 'तमिण-तमिम' से धमन 'सुणेइश्रृणुत' हे शिष्यो तमे 8t Hiमणे 'अपडिन्ने-अप्रतिजः' पाताना तपनु३॥ 2011 था 'समाहिपत्ते-समाधिप्राप्तः' समाधिने प्राप्त 'अणियाण भूएसुअनिदानो भूतेपु' प्रारियाना भ२ मा ४२ता थ'भिक्खू-भिक्षु' साधु परिव्वएजा-परिवजेत्' शुद्ध सेवा सयभनु पासन ४२ ॥१॥ અન્વયાર્થ–મતિમાનું અર્થાત્ કેવળજ્ઞાનથી ચિંત્વન કરીને એટલે કે કેવળજ્ઞાનથી જાણીને સરળ સમાધિ ધર્મનું કથન કરેલ છે એ ધર્મનુ શ્રવણ ક, અહિક-આલેક સંબધી તથા પારલૌકિક-પરલેક સંબંધી આકાંક્ષાથી * રહિત થઈ સમાધિને પ્રાપ્ત કરી છે સંબંધી અરંભ ન કરવાવાળા ભિક્ષુ સંયમમાં પર કામ કરે છે ટીકાથે-મનન કરવું તે મતિ છે, અહિયાં મતિને અર્થ સઘળા પદા
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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