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________________ सूत्रकृतस्त्रि जरणोपायं च ज्ञपरिज्ञया ज्ञात्वा तत् प्रत्याख्यानपरिज्ञया परित्यजति पुनरकरण तया प्रत्याख्याति । एतेन किं भवतीत्याह-येन कारणेन पापकर्मानाचरणरूपेण पूर्वकृतकर्मक्षपणरूपेण च स मुनिः 'न जायई न जायते सप्लारे नोत्पद्यते न जन्म गृह्णाति 'न मिज्जई' न म्रियते न वा मृत्यु प्राप्नोति तस्याग्रे मोक्षसद्भावात, स जन्मजरामरणविप्रमुक्तो भूत्वा सिद्धिगतिनामधेयं स्थान प्राप्नोतीति भावः ।७! मूलमू-ण मिज्जई महावीरे जस्स नस्थि पुरे कडं। वाउव्व जाल मञ्चेति पियालोगसि इथिओ॥८॥ छाया-न म्रियते महावीरो यस्य नास्ति पुरा कृतम् । वायुरिव ज्वाला मत्येति पिया लोके स्त्रियः ॥८॥ अर्थात पुनः न करने की प्रतिज्ञा करके प्रत्यारपान कर देता है। ऐसा करने से क्या होता है ? पापकर्मों का आचरण न करने से तथा पूर्वे. कृत कर्मो का क्षय कर डालने से वह मुनि न संसार में जन्मता, न मृत्यु को प्राप्त होता है । उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। वह जन्म जरा मरण से सर्वधा मुक्त होकर सिद्धिति नामक स्थान को प्राप्त कर लेता है ॥७॥ 'ण मिज्जई महावीरे' इत्यादि। शब्दार्थ- 'जस्स-यस्य' जिलको 'पुरेकडं-पुराकृतम्' पूर्वभवो. पार्जित कर्म 'नधि-नास्ति' नहीं है ऐसा वह 'लहावीरे-महावीर पुरुष 'ण मिज्जई-न म्रियते' मरता नहीं है तथा उपलक्षण से जन्मता भी नहीं है अर्थात् जन्म मरण से मुक्त होता है कारणकी वह 'लोगसिશું થાય છે? પાપકર્મોનું આચરણ ન કરવાથી તથા પહેલાં કરેલા કર્મોને ક્ષય કરી નાખવાથી તે મુનિ સંસારમાં જન્મ ધારણ કરતા નથી તેમ મૃત્યુ પણ પામતું નથી તેને મોક્ષ પ્રાપ્ત થઈ જાય છે? તે જન્મ, જરા અને મરણથી સર્વથા મુક્ત થઈને સિદ્ધિ ગતિ નામના સ્થાનને પ્રાપ્ત કરી લે છે. પાછા ‘ण मिज्जइ महावीरे' त्या शहाथ-'जस्स-यस्य' ने 'पुरेकड-पुराकृतम्' पूवात 'नथि-नास्ति' नथा मेवे ते 'महावीरे-महावीरः' भडापी२ ३५ 'न मिज्जई-न म्रियते' मरते नथी. तथा GRajथी मत ५५ नथा. अर्थात् + भरथा भुत थाय छे. १२५ ते 'लेगसि लोके' यतमा 'पिया
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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