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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १४ ग्रन्थस्वरूपनिरूपणम् अन्वयार्थः-गुरुकुलवासिशिष्यस्य विनयविधिमाइ-(कालेण) “काछेनप्रष्टव्यकालं ज्ञात्वा (पयासु) प्रजाम-जीवविषये (समिय) समितम् सम्यग् ज्ञानयुक्तम् आचार्यम् (पुच्छे) पृच्छेत्--जीवादिविषयकं प्रश्नं कुर्यात्, प्रश्नोत्तरं ददद खल्ल गुरुः शुश्रूषायोग्यो भवति अतएवाह-(दवियस्स) द्रव्यस्य-मोक्षगमनयोग्यभव्यस्य वीतरागस्य वा (वित्त) वृत्तम्-संयमानुष्ठानम् आगमं वा (आइक्खमाणो) प्रजासु' जीवों के विषयमें 'समियं-समितम्' सम्यक् ज्ञानवाले आचार्य को 'पुच्छे-पृच्छेत्' जीवादि संबंधी प्रश्न पूछे 'दवियस्स-द्रव्यस्य मोक्ष गमन के योग्य सर्वज्ञके 'वित्तं-वृत्तम्' संयमानुष्ठानको 'आइक्खमाणे -आचक्षाण' बताने वाले आचार्य की साधु पूजा करे '-तम्' उस आचार्यके उपदेशको 'सोयकारी-श्रोत्रकारी' आचार्य की आज्ञाका पालन करने वाला शिष्य 'पुढो-पृथक् एकान्त भावसे 'पवेसे-प्रवेशयेत्' अपने अंतःकरण में स्थापित करे 'इम-इमम् आगे कहे जाने वाला 'केवलियं-कैवलिकम्' केवल ज्ञानप्ले कहा हुआ 'समाहि-समाधिम्' सम्यक ज्ञानादिको 'संखा-संख्याय' सम्यक प्रकारसे जान करके हृदय में धारण करे ॥१५॥ अन्वयार्थ-पूछने का समय जान कर या देखभाल कर शिष्य-प्रजा जीवोंके विषय में सम्यग्ज्ञान युक्त आचार्य को पूछे, याने जीवादि विषय प्रश्न करे, प्रश्नों का उत्तर देने वाले शुरु सेवा करने योग्य होते हैं। इसलिये कहते हैं कि भव्य द्रव्ध अर्थात् मोक्ष गमन योग्य अथवा प्रजासु' याना समयमा 'समिय-समितम्' सभ्य ज्ञानवाणी यायायन 'पुच्छे-पृच्छेत्' ५ पूछे. 'दवियरस-द्रव्यस्य' भाक्ष गमनने योग्य सवज्ञान 'वित्त-वृत्तम्' सयभानुठानने 'आइक्खमाणे-आचक्षाण.' मतावा मायायना साधु सा२ ४२ 'त-तम्' को माया । पहेशने 'सोयकारी-श्रोत्रकारी' मायाय नी माज्ञान पान ४२वावाणी शिष्य 'पुढो-पृथम्' सन्त नया 'पवेसे-प्रवेशयेत्' पाताना मत:४२ मा धार ४२ 'इम-इमम्' मा . पामा भावना२। 'केवलियं-कैवलिकम्' ज्ञानथा ४ामा मावेस 'समाहि-समाधिम्' सभ्य सानामिन 'संखाय-संख्याय' सारी शत nging. યમાં ધારણ કરે છે૧પ અન્વયાર્થ–પ્રશ્ન પૂછવાને સમય જાણીને સમજી વિચારીને શિષ્ય પ્રજાના હિત સંબંધી સમ્યક્ જ્ઞાન યુક્ત આચાર્યને પ્રશ્ન પૂછે છે. અર્થાત જીવાદિના સંબંધમાં પ્રશ્ન કરે. પ્રશ્નોના ઉત્તર આપવાવાળા ગુરૂ સેવા કરવા
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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