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________________ ४१५ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १४ ग्रन्थस्वरूपनिरूपणम् शास्त्रविरुद्धर्मकर्ता गृहस्थः परसमयानुसारी, तथा वयसाऽल्पो वृद्धो वा एवमत्वन्तनिन्दितदासीव, यदि साधु सवैज्ञप्रणीतशिक्षामाश्रित्याधिक्षिपेत् तदा साधु स्तत्र क्रोधं न कुर्यात् मत्युत स्वहितमितिकृत्वा सहर्ष स्वीकुर्यादिति भावः॥८॥ मूलम्-ण तेसु कुज्झे णे व पेठवहेजा, ण यावि किंची फरुसं वएज्जा। तहा करिस्संति पडिसुजा, सेयं खु अयं ग पैमायं कुज्जा ॥९॥ छाया-न तेषु जुध्येन्न च प्रव्यथयेत् , न चापि किश्चित्तरूप बदे । तथा करिष्यामीति प्रतिशृणुयात् , श्रेयः खलु भयं न प्रमादं कुर्यात्।९। अपमानपूर्वक आक्षेप होने पर भी तनिक भी अपने मनको दूषित न करे । अपि तु यही सोचे कि इसका कहना मेरे लिए कल्याणकारी है। आशय यह है-शास्त्र विरुद्ध कार्य करनेवाला गृहस्थ, अन्धमतावलम्बी उम्र में छोटा, बडा या अत्यन्त निन्दित मनुष्य भी यदि साधु पर आक्षेप करे (फटकारे) तो भी साधु कोप न करे ॥८॥ __ 'ण तेस्लु कुज्झे ण य पदहेज्जा' इत्यादि। _शब्दार्थ-'तेस्तु-तेषु' स्वसमय परसमय में रहने वाले आक्षेप करनेवालों पर साधु 'ण कुज्झ-न क्रुध्येत्' क्रोध न करे 'ण य-न च न उसको 'पन्चहेज्जा-प्रव्यथयेत्' पीडित करे अर्थात् इस प्रकार से करनेवालों को पीडा न करें 'ण यावि-न चापि' और न 'किंचि फलसं वएज्जा-किञ्चित् परुषं वदेत्' कोई भी कठोर वचन कहे परंतु उसका થાય તે પણ જરા પણ પિતાના મનને દૂષિત ન કરે. પરંતુ એજ વિચારે -मानु. ४थन भारे भाट ४क्ष्या २४ छ. કહેવાનો આશય એ છે કે–શાસ્ત્રવિરૂદ્ધ કાર્ય કરવાવાળા ગૃહસ્થ અન્ય મતાવલમ્બી, ઉમરમાં નાને, માટે, અથવા અત્યંત હલકો મનુષ્ય પણ જે સાધુ પર આક્ષેપ કરે (ઠબકાદે) તે પણ સાધુએ ક્રોધ કર નહીં. ૮ 'ण सेसु कुज्झे ण य पव्वहेज्जा' त्याह शहाथ-'तेसु-तेपु' ५५समय ५२समयमा २२वा वा मा५ ४२१।4 . S५२ साधु 'ण कुज्झे-न क्रुध्येत्' धन ४२ ‘ण य-न च' त तन 'पव्वहेज्जा-प्रव्यथयेत्' पास ४२ अर्थात् ॥ शत पापाजासाने पान ४२ 'ण यावि-नचापि' तम न किंचि फरसं वएज्जा-किश्चित् परुष वदेत्' ई
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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