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________________ २६० . .. . सूत्रकृतास्त्र अन्वयार्थः--पूर्वोक्ता लोकायतिकादयः (गिरा) गिरा-स्ववचसा (गहीए) गृहीते स्वीकृतेऽर्थे (संमिस्सभावं च) संमिश्रभावं च अस्तित्ररूपं द्विधामा कथयन्ति (से) स:-तेपा मध्ये यः कश्चित् सः केनाऽपि पृष्टः सन् (मुम्मुई) (मुम्मु) इत्यव्यक्तभापी, यद्वा मूकमूका-अत्यन्तमूक एव (होइ) भवति । तिक आदि 'संमिस्सभावं-संमिश्रभावम्' मिश्र . पक्षको अस्तित्व नास्तित्व रूपाद्विधा भावसे कहते हैं अर्थात् पदार्थ की सत्ता और 'असत्ता दोनों से मिश्रित पक्ष को स्वीकार करते हैं 'से-स' वे कोई जिज्ञासु के द्वारा पूछने पर 'मुम्सुई-मूक मूक'. मौनावलम्बी 'होइभवति' हो जाते हैं इतनाही नहीं किन्तु 'अणाणुचाई-अननुवादी' स्याद्वाद्वादियों के कथन का अनुवाद करने में भी असमर्थ हो कर मुक हो जाते हैं और इमं-इदम्' इस परमत को 'दुपक्खं-द्विपक्षम्' प्रतिप्रक्षेवाला कहते हैं और 'इम-इदम्' अपने मतको 'एगपक्ख-एकपक्षम्' प्रतिपक्ष रहित है ऐसा 'ओहंसु-आहुः' कहते हैं तथा 'छलायतणं-छलायतनं' कपटयुक्त 'कसम-कर्म' कर्म अर्थात् कपट युक्त ‘घारजाल रूप कर्म करते हैं ॥५॥ अन्वयार्थ-पूर्वोक्त नास्तिक आदि अपने वचनों से स्वीकृत पदार्थ में भी संमिश्र भाव कहते हैं अर्थात् जब अपने स्वीकार किये अर्थका ही निषेध करते हैं तो विधि और प्रतिषेध दोनों कर देते हैं। जब उनसे कोई प्रश्न करता है तो वे बिलकुल सूक हो जाते हैं। यही नहीं परन्तु .४२ यति विगैरे 'संमिस्सभावं-संमिश्रभावम' मिश्र पक्षन मस्तित्व "નાસ્તિત્વરૂપ દ્વિધા ભાવથી કહે છે. અર્થાત્ પદાર્થની સત્તા અને અસત્તા भने यही मिश्रित पक्षन वी२ ४२ छे. 'से-सः' aani | ज्ञासु । ५छामा मावे त्या 'मुन्मुई-मूकमूकः' मीननु असम्मान ४२वावा 'होइ-भवति' थाय छे. न्यु नही ५५Y 'अणाणुवाई-अननुवादी' २यादा દિવાદિના કથનને અનુવાદ કરવામાં પણ અસમર્થ બનીને મૂંગા બની જાય '®.मन 'इम-इदम्' मा ५२मतले. 'दुपक्ख-द्विपक्षम्' प्रतिपक्षवाणी ४३ छे. भने इम-इदम्' पोताना भतने 'एगपखं-एकपक्षम्' प्रतिपक्ष विनाना छे से प्रमाणे 'आहंसु-आहुः' ई छ. तथा 'छलायतण-ठलायतनम्' ५५८ सरेता 'कम्म-कर्म' पाणिविसास ३५ ४ ४२ता २ छे. ॥५॥ અન્વયાર્થ–પૂર્વોક્ત નાસ્તિક વિગેરે પિતાના વચનથી સ્વીકારેલા પદા માં પણું સંમિશ્રભાવ કરે છે. અર્થાત જ્યારે પિતે સ્વીકારેલા અર્થનેજ “નિષેધ કરે છે. તે વિધિ અને નિષેધ બને એકી સાથે કરી બેસે છે. તેઓને
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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