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समयार्थयोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २३९ जान लेना चाहिये । उसी के निरूपण के लिए यह अध्ययन है। इसका प्रथम खून है-'चत्तारि' इत्यादि। .. शब्दार्थ-'इमाणि-इमानि' ये लोक में प्रसिद्ध ऐले 'चत्सारिचत्वारि चार 'लमोलरणाणि-समवसरणानि' परतीर्थिकों का समूह है 'जाई-यानि' जो परतीर्थिकों के समूह 'पावादुघा-पारादुकाः' मज ल्पक होकरके 'पुढो वयंति-पृथक्वन्ति' वे चारों पृथक पृथक सिद्धांत हा प्रतिपादन करते हैं। कोई परतीर्षिक 'किरिय-क्रिया' क्रिया को अर्थात् जीवादि पादार्थ का अस्तित्त्वरूप आहेसु-आहुः' कहते हैं यह पहला समवसरण है १ कोई कोई 'अक्लिरियं-अक्रियां' जीवादि पदार्थ नहीं है इत्यादि प्रकारले 'आहंस्तु-माह' कहते हैं। यह दूसरा समवस रण है २ एवं कोई 'विणयत्ति'-विनयमिति' केवल चिनय से ही मोक्ष होता है ऐसा 'तइय-तृतीयं तीसरा समवसरण है 'चउत्थमेवचतुर्थमेव' और चौथा परतीर्थिक 'अनाणं-अज्ञानम्' अज्ञानसे ही मोक्ष होता है इस प्रकार 'आहुः कथयन्ति' कहते है, यह चौथा लमघसरण है ये पूर्वोक्त चारों परतीर्थिकप्राचादुक-अर्थात् वागविलास करने वाले हैं वे लोग वृथावाद करते हैं ॥१॥ માટેજ આ અધ્યયનને પ્રારંભ કરવામાં આવે છે. આ અધ્યયનનું પહેલું सूत्र मा प्रमाणे 2. 'चत्तारि' त्या
शहाथ-'इमाणि-इमानि' मा प्रसिद्ध सपा 'चत्तारि-चत्वारि' यार 'समोसरणाणि-समवसरणानि' ५२तीयिनी समूह छे. 'जाइ-यानि' २ ५२ती अनी समुदाय 'पावादुया-प्रावादुकाः' प्र०४६५४ ४२ 'पुढो वयंतिपृथक् वदन्ति' से न्यारे नही हो प्रा२ना सिद्धांतनु प्रतिपादन ४२ छे, । ५२तीय 'किरिय-क्रियां' या अर्थात् पिहान मस्तित्व. ३५ 'आहेसु-भाहुः' ४ छे. २मा पड संभषस छे. १ 'अकिरिय-अक्रियां' पाहि पहा नथी विगैरे माथी आइंसु-आहु. ४.
मा भी समवसर छ. २ मे प्रमाणे 'विणयत्ति-विनयमिति' उस विनयथी मोक्ष प्रास थाय छे. मे प्रभाको 'तइय-तृतीय श्री १ मत 'आहुः' । छ मा श्री समवसर छे 3 'चउत्यमेव-चतुर्थमेव' भने याथा ५२नी 'अन्नाणं-अज्ञानम्' मज्ञानथी भाक्ष प्राप्त थाय छे मा પ્રમાણે “ભાઈ કહે છે આ ચોથું સમવસરણ છે ૪ આ ઉપરથી કહેવામાં આવેલ ચારેય પરતીર્થિક પ્રાવાદુક અર્થાત, વાણીને વિકાસ જ માત્ર કરવાવાળા હોય છે. એ લેકે ફોગટજ વાણુને વિલાસ કરતા રહે છે, એટલે કે કૈવળ બડબડાટ જ કરે છે. તેના