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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ११ मोक्षस्वरूपनिरूपणम् १७९ अन्वयार्थ:-(मइम) मतिमान-बुद्धिमान् (हपाहि अणुजुत्तीहि) सर्वामिरनुयुक्तिभियुक्तिसङ्गतिभियुक्तिभिः (पडिले हिया) पृथिव्यादय इति प्रतिलेख्यपर्यालोच्य (सव्वे अकंतदुक्खा) सर्वे प्राणिनः अान्तदुःखा:-अभियदुःखाः मुखलिप्सवश्व इति जानीयात् (अओ सव्वे न हिंसया) अत:-अस्मादेव कारणात सर्वान् प्राणिनो न हिस्यान्न विराधयेदिति ॥९॥ टीका-सामान्यतः षड्जीवनिकायाः प्रदर्शिताः, एतेषु किं कर्त्तव्यमितीदानी दर्शयति भूत्रकार:-'सवाहि' इत्यादि । 'सब्याहिं' सर्वाभिः 'अणुजुचीहिं' अनुयुक्तिमि, अनुकूला चासौ युक्तिरित्यनुकूलयुक्तिः स्वमुखमियन्वादिस्तामिः अथवा दोषरहितसपक्षधर्मत्वादियुक्ताभियुतिभिरनुमान:-'मइमं' मतिमान्दुक्खाः सभी प्राणियों को दुःख अप्रिय है यह समजे 'अओ सव्वे न हिंसया-अतः सन्निहिस्थात्' अतएच कोई भी प्राणी की हिंसा न करे।।९॥ ____ अन्वयार्थ--धुद्धिमान पुरुष सभी युक्तियों से पृथ्वीज्ञाय आदि का विचार करके यह समझे कि सभी प्राणी को दु:ख आक्रान्त हैं अर्थात किसी भी प्राणी को दुःख प्रिय नहीं हैं, सभी स्लुख के अभिलाषी हैं इस कारण किसी भी प्राणी की विराधना न :करे ॥२॥ टीकार्थ-सामान्य रूप से छह जीवनिकाय दिखलाए गए हैं। अय सूत्रकार यह कहते है कि उनके प्रति हमारा क्या कर्त्तव्य है ? सभी अनुकूल युक्तियों से अर्थात् अपनी सुखप्रियता आदि के विचार से या निर्दोष अनुमान आदि रूप युक्तियों से सत् असत् का विवेक रखने सिद्धि श. 'सव्वे अकंतदुक्खा-सर्वे अकान्तदुःखाः' मा प्राणियोन म भप्रिय छे. मे पात समरे 'अओ सव्वे न हिंसया-अतः सर्वान्नहिस्यात्' मेटा भाट ५y tolनी हिसा न ४२वी. ॥६॥ અન્વયાર્થ–બુદ્ધિમાન પુરૂષ બધીજ યુક્તિથી પૃથ્વિકીય વિગેરેને વિચાર કરીને એ સમજે કે-બધા જ પ્રાણિને દુઃખ અપ્રિય છે. અને બધા પ્રાણિ સુખની ઇચ્છા કરવાવાળા છે. તેથી કોઈ પણ પ્રાણીની વિરાધના કરવી નહીં મેલા ટીકાર્થ–સામાન્ય રીતે છ જવનિકાય બતાવવામાં આવેલ છે. હવે સૂત્રકાર એ કહે છે કે તેની પ્રત્યે અમારું શું કર્તવ્ય છે? સઘળી અનુ કૂળ યુક્તિથી અર્થાત્ પિતાની સુખ પ્રિયતા વિગેરેના વિચારથી અથવા નિર્દોષ અનુમાન મદિરૂપ યુક્તિથી સત્ અસત્નો વિવેક સમજનારા બુદ્ધિ
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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