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________________ , समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १० समाधिस्वरूपनिरूपणम् : अन्वयार्थ:- (आदीणविनीव पावं करेइ) आदीनवृत्तिरपि पूर्वकृतकर्मणा दरिद्रोऽपि पापं कर्म-सावधानुष्ठान करोति (मंतो उ एगंतसमाहिमाहु) मत्वा तु "उक्तस्वरूप ज्ञात्वा पुनः एकान्तेनात्यन्तेन यो भावरूपो ज्ञानादि समाधिस्तम् 'आहुः-संसारोत्तरणाय तीर्थकरादयः, अतः (बुद्धे ठियप्पा) बुद्धः-अवगततत्वः स्थितात्मा संयमी मुनिः (समाही य विवेगे रए) समाधौ च विवेके रता-समाधौ -चतुर्विधविनयश्रुताचारतपोरूपे आहारोपकरणकषायपरित्यागरूपे रतः-परायणः ''(पाणाइवाया विरए) प्राणातिपातात् कृतकारितानुमोदनरूपात् पडूजीवनिकायविराधनातो विरत:-निवृत्तो भवतीति ॥६॥ है वह भी पाप करता है । (मंत्ता उ एगंतसमाहिमाहु-मत्वा तु एकान्तसमाधि माहुः' यह जानकर तीर्थंकरों ने एकान्त समाधि का उपदेश किया है 'घुद्धे ठियप्पा-बुद्धः-स्थितात्मा' इसलिये विचारवान शुद्धचित्त पुरुष 'समाही य विवेगे रते-समाधौ च विवेके रतः समाधि और विवेक में रत रहे 'पाणाइवाथा विरए-प्राणातिपातात् विरत.' एवं माणातिपात से निवृत्त रहे ॥६॥ . अन्वयार्थ पूर्वकृन कर्मों के कारण दरिद्र हुआ जीव भी पाप“कर्म करता है। इस तथ्य को जान कर तीर्थंकर भगवान्ने एकान्त रूप से समाधिका कथन किया है। अतएव तत्व को ज्ञाता और संयमधारी 'मुनि समाधि और विवेक में निरत (तत्पर) होकर प्राणातिपात से निवृत्त हो जाता हैं ॥६॥ पण. ५५ ४ ४ ४२ छ. 'मंता उ एगंतसमाहिमाहु-मत्वातु एकान्तममाधिमाहुः' An mela तारे थे मेन्त (B) साधिन ४ ५॥ ४॥ छे. 'बुद्धे ठियप्पा-बुद्धः स्थितात्मा' मा २ विद्यारवान्, शुद्धचित्त५३५ ‘समाहियविवेगे रते-समाधौ ध विवेके रतः' समाधि भने विभा २, २९ . 'पाणाइवाया विरए-प्राणातिपातात् विस्त.' तथा प्रातिपातथा निवृत्त २३ ॥६ અન્વયાર્થ–પહેલાં કરેલા કર્મોને કારણે દરિદ્ર બનેલ જીવ પણ પાપકર્મ કરે છે. આ તથ્યને સમજીને તીર્થંકર ભગવાને એકાન્તપણાથી સમાધિના કથન કરેલ છે. અએવ તત્વને જાણવાવાળા અને સંયમી મુની સમાધિ અને વિવેકમાં તત્પર થઈને પ્રાણાતિપાતથી નિવૃત્ત થઈ જાય છે. હું स० १४
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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