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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. २ अनुकूलोपसर्गनिरूपणम् मूलम् - चोइया भिक्खुचरियाए अचयेतो जवित्तये । ६ . तत्थ मंदा विसीति उज्जाणंसि व दुब्बला ॥२०॥ छाया--नोदिता भिक्षुचर्ययाऽशक्नुवन्तो यापयितुम् । तत्र मन्दा विषीदन्ति उद्यान हव दुर्बल|| ||२०|| ८१ अन्वयार्थः -- (भिक्खुचरियार) भिक्षावर्या (चोइया) नौदिताः (जवित्त) यापयितुम् (अचयंता) अशक्नुवन्तः (तन्य) तत्र = तस्मिन् संयमे (मंदा) मन्दाः अभिप्राय यह है- हे साधो ! आपने दीर्घकालपर्यन्त संयम का अनुष्ठान किया है, अतएव अब स्त्री वस्त्र आदि का उपयोग करने पर भी आप को दोष नहीं लगेगा। इस प्रकार प्रलोभन देकर और विषयभोगों के लिए आमंत्रित करके राजा आदि लोग साधु को पतित करते हैं, जैसे बधक - शिकारी अन के कणों से लुभाकर शुकर को फँसाते हैं ।। १९ । 'बोइया भिक्खुरियाए' इत्यादि । · शब्दार्थ---' भिक्खुनरियाए - मिक्षाचर्यया साधुओं की सामाचरी को पालन करने के लिए 'बोइया-नोदिता' आचार्य आदि के द्वारा प्रेरित किए हुए 'जवित्तए - वापवितुम्' एवं उस सामाचारी के पालनपूर्वक अपना निर्वाह 'अवयं-अशक्नुवन्स' नहीं कर सकते हुए 'मंदा - मन्दा:' अज्ञानिजन 'तत्थ-तत्र' उस संयम में 'वितीयंति-दिषी આ કથનના ભાવાર્થ એવા છે કે- હું સાથે!! આપે દીર્ઘકાળ ત સયમની આરાધના કરી છે, તેથી હવે સ્ત્રી, રસ, આદિના ઉપભેાગ કરવા છતાં પણ આપને દોષ લાગશે નહી! આ પ્રકારના પ્રલેાભના દ્વારા રાજા આદિ પૂર્વોક્ત લેાક સાધુને વિષયોાર્ગો પ્રત્યે આાકી ને તેનું પતન કરે છે. જેવી રીતે શિકારી ચેાખાના કણે! બતાવીને શૂને ફસાવે છે, એજ પ્રમાણે લેકે ભેગોપભોગની સામગ્રી દ્વારા સાધુને લલચાવીને તેને સયમના માગ થી ચલાયમાન કરે છે. ૫૧૯૫ 'चोइया भिक्खुचरियाए ' त्यिाहि शब्दार्थ - भिवखुरियाए - भिक्षाचर्यया' साधुमानी सभायारीने पासन ४२वाना भाटे 'चोइया-नोदिता:' मायार्य वगेरेना द्वारा प्रेरित 'जवित्तए - यापयितुम्वु ते साभायारीना पासन पूर्व पोताना निर्वाह 'अघयताअशक्नुवन्त नारी शत 'मंदा - मन्दा: ' भूर्भ भाथुस 'तत्थ-तत्र' ते सभयभां सू० ११ ,
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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