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________________ ६४७ समयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ८ उ. १ वीर्यस्वरूपनिरूपणम् भेदप्रदर्शनपूर्वकमेव वीर्य रूपम ह-'कम्म मेगे पवेदति' इत्यादि । मूलम्-कम्म भेगे पैवेदति अकरूनं वावि सुवया। एएहिं दोहिं ठाणेहि जेहिं 'दीसंति मच्चिया॥२॥ छाया-कमैं के मवेदयन्त्यकर्म वापि सुव्रताः। आभ्यां द्वाभ्यां स्थानाभ्यां याभ्यां दृश्यन्ते मयाः ॥२॥ अन्वयार्थः-(एगे कम्मं पवेदेति) एके केचन कसैंव वीर्य प्रवेदयन्ति कथयन्ति (सुव्वया अकम्मं वा दि) हे सुव्रताः । केचन अकर्म एव वीर्य कथयन्ति (मच्चिया) मीः (एएहि) आभ्याम् (दोहिं ठाणेहि) द्वाभ्यां स्थानाभ्याम् (दीसंति ) दृश्यन्ते इति ॥२॥ अघ भेद निरूपण करते हुए वीर्य का स्वरूप कहते हैं'कम्म मेगे पवेदंति' इत्यादि । शब्दार्थ-'एगे कम्मं पवेदेति-एके कर्म प्रवेदयन्ति' कोई कर्म को वीर्य ऐसा कहते हैं 'सुब्बया अकम्मं वावि-सुव्रताः अकर्म वापि' और हे सुव्रतो! कोई अकर्म को वीर्य कहते हैं 'मच्चिया-मोः' मयं लोक के प्राणी 'एएहि-अभ्या' इन्हीं दोहि ठाणेहि-दाभ्यां स्थानाभ्याम्' दो स्थानों से 'दीसंक्ति-दृश्यन्ते' देखे जाते हैं ।।२॥ अन्वधार्थ-हे सुव्रतों ! (अच्छे व्रताले भन्यो ') कोई कर्म को ही वीर्य कहते हैं, कोई अकर्म को वीर्य कहते हैं। इन्ही दो भेदों में मनुष्य देखे जाते हैं ॥२॥ डवे सोनु नि३५ ४२ता वीयन २१३५ ४३ छ. 'कम्ममेगे पवेदंति' त्यादि शहाथ-'एगे कम्म पवेदंति-एके कर्म प्रवेदयन्ति' छ भने वाय से प्रभारी ४ छ 'सुठदया अकम्मं वावि-सुव्रताः अकर्म वापि' मने सा२॥ प्रतवाणा 'भुनियो । मभन पीय मे प्रभाये ४ छे. 'मच्चिया-माः' मृत्युना on 'एएहिं-आभ्यां' मा 'दोहि ठाणेहि-द्वाभ्याम् स्थानाभ्यम्' में स्थानाथी 'दीसंति-दृश्यन्ते' हेमाय छे. ॥२॥ અન્વયાર્થ–હે સુવ્રત (સારાત્રત વાળા ભ) કેઈ કર્મને જ વીયે કહે છે, કેઈ અકર્મને વીર્ય કહે છે ? એ બે ભેદેવાળા મનુષ્યો જોવામાં આવે છે પરા
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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