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________________ ૮૪ संकुले लोके 'क्रूरकर्मकारी 'सम्पुणा' स्वकृतमाणादिपातादिकूरकर्मणा विपरिया' विपर्यासमुपैति सुखमिच्छता प्राणातिपातादिकमाचरता दुःखमापद्यते चातुर्गतिकः संपारः परिभ्रम्यते ॥ ११॥ मूलम् - हेहेग मूढा पैवियंति मोक्खं आहारसंपजणवज्जणेणं । ऐगे ये सीओ सेवणं हुएण एंगे पंचयंति मोक्खं ॥१२॥ छाया - इहैके मूढा प्रवेदयन्ति मोक्षमाहारसम्पज्जननवर्जनेन ।' एके च शीवोदकसेवनेन हुतेन एके भवदन्ति सोक्षम् ॥१२॥ T "सूत्रकृताङ्गसूत्रे में क्रूर कर्म करनेवाला जीव अपने ही किये पाप कर्मों के द्वारा वियस को प्राप्त होता है अर्थात् सुख पाने की अभिलाषा से हिंसा आदि पापों का आचरण करता है, किन्तु उन पापों के परिणामस्वरूप उलटा दुःखों का ही भागी होता है - संसार में परिभ्रमण करता है ॥११॥ 'हेगा' इत्यादि । शब्दार्थ - 'इह - इह' इस जगत् में अथवा इस मोक्ष के संबंध में 'एगे - एके' कोई 'मूढा मूढाः' मूर्ख जन 'आहार से पज्जणवज्जणेणंआहार संपज्जननवर्जनेन' नमक खाना छोड देने से 'मोक्खं पवयंति -मोक्षं प्रवदन्ति मोक्ष प्राप्ति होना कहते हैं 'एगे घ एके 'च' और कोई 'सी ओगलेवणेण - शीतोदकसेवनेन' शीतल जल का सेवन करने से मोक्ष होना कहते हैं 'एगे - एके' कोई 'हुएण- हृतेन' होम करने से 'मोक्खं पवति' प्रोक्षं प्रवदन्ति' मोक्ष होना कहते हैं ॥१२॥ પીડાતા આ લેાકમાં ક્રૂર કર્મ કરનારા જીવેા પાતે કરેલાં પાપકર્માને કારણેજ વિપરીત દશાને અનુભવ કરે છે. આ કથનના ભાષા એ છે કે સુખ પ્રાપ્ત કરવાથી અભિલાષાથી હિંસા આદિ પાપાનું આચરણ કરે છે, પરન્તુ તે પાપેાના પરિણામ સ્વરૂપે સુખને બદલે દુઃખાના જ ઉપલેગ કરે છે એટલે કે સ'સારમાં પરિભ્રમણ કર્યા કરે છે અને જન્મ, જરા, મરણું આદિ દુઃખાને અનુભવ કર્યા કરે છે. ૫૧૧૫ " 'इहेग मूढा त्याहि शब्दार्थ- 'इइ-इह' मा भगत्मा अथवा આમાક્ષના · સબધમાં 'एगे - एके' अर्ध 'मूढा - मूढाः ' भूबो 'आहारसंपजणवज्जणेणं- आहार संपज्जनेन वर्जनेन' भीहु भाषानुं छोडी हेवाथी 'मोक्ख' पवयं'ति- मोक्ष' प्रवदन्ति' मोक्षनी आप्ति थषातु खे छे, 'एगे य-एके च' भने । शीतोदकसेवनेन' 31 पाथी सेवन रवाथी भोक्ष थवानुं' हे 'हुएण-हुवेन' होभ साधी 'मोक्ख' पवयंति - मोक्ष वानुं ॥ १२ ॥ 'सीओदंग सेवणेण - डे हे 'एगे एके' प्रवदन्ति' भोक्षं
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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