SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 580
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्रकृतासूत्र - अन्वयार्थ:-(उज्जालओ) उज्ज्वालका-अग्नि प्रज्वालकः (पाण निवायएजना) मंगान काष्ठादिगतान् जीवान् निभातयेत्-विनाशयेत् । तथा (निनावी) निर्वा पकः)-अग्नेः शान्तयिता अति (अगणि निवायवेज्जा) अग्नि-अग्निकायं निपात येत् उपहत्येव (तम्हा उ) तस्मात्तु-तस्मात् कारणात् (मेहावी) मेधावी (पंडिए) पंडितः सदसद् विवेकवान् 'धम्म समिक्ख' धर्म श्रुतचारिक्षलक्षणं समीक्ष्य दृष्ट्वा (अगणि) अग्निकायं (ण समारभिज्जा) न-नैव समारभेत्-अग्निकायसमारम्भ न कुर्यादिति ॥६॥ टीका---'उज्जालओ' उज्ज्वालकोऽग्निपदीपकः पुमान् 'पाण' प्राणान् प्राणवत इत्यर्थः निवायएज्जा' निपातयेत् यः तपनतापनपचनपरिपाचननिवायवेज्जा-अग्नि निपातयेत्' अग्निकायके जीवोंका घात करता हैं 'तम्हा उ-तस्मात्तु' इस कारण से 'मेहावी-मेधावी बुद्धिमान 'पंडिएपण्डितः' पंडित पुरुष अर्थात् सत् असत् को जाननेवाला पुरुष 'धम्म समिक्ख-धर्म समीक्ष्य' श्रुतचारित्ररूप धर्म को देखकर 'अगणि-अग्नि' अग्निकायका 'ण समारमिज्जा-न समारभेत समारंभ न करे ।।६।। । अन्वयार्थ--अग्नि जलाने वाला काष्ठ आदि में रहे हुए जीवों का घात करता है और उसे' वुझाने वाला अग्निकायिक जीवों को घात करता है। अतएव मेधावी पुरुष धर्म का विचार करके अग्निकाय का आरंभ न करे ॥६॥ टीकार्थे-जो पुरुष अग्नि जलाता है, वह प्राणों अर्थात प्राणियों का घात करता है । तपन, तापन, पचन या पाचन आदि के लिए अमित सोलापाणी पु३५ ५] 'अगणी निवायवेजा-अग्नि निपातयेत्' -- अभिडायना धात ४२ छे. 'तम्हाउ-तस्मात्तु' मा रथी मेहावी-मेधावी' भुद्धिमान पाडिए-पण्डितः' ५५३५ अर्थात् सत् असत् ने नवापाणी ५३५ 'धम्म समिक्ख-धर्म समीक्ष्य' श्रुतयारित्र ३५ २ धन 'अगणि-अग्नि' अमिताय ना 'ण समारभिज्जा-न समारभेत' सभा न ४२ ॥ ६॥ –અગ્નિ સળગાવનાર માણસ કાષ્ઠ આદિમાં રહેલા જીવને ઘાત કરે છે, અને તેને બુઝ વનાર અગ્નિકાય જીવોને ઘાત કરે છે તેથી મેધાવી પુરુએ ધર્મને વિચાર કરીને અગ્નિકાયને આરંભ કર જોઈએ નહી ને ૬ टी--२ पु२५ अभि सजावे छ, ते पाना (TRi) घात रे છે. તાપવા માટે, તપાવવા માટે, ખોરાકને રાંધવા કે રંધાવવા આદિને માટે
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy